इसी अनाज से सीमा और लक्ष्मी कई तरह के व्यंजन बनाकर प्रयोग कर रही हैं। ये आइडिया लोगों को काफी पसंद भी आ रहा है। लाल चावल की कई किस्मों और कोदो, कुदकी, गटका व अन्य मोटे व लघु अनाज से व्यंजन बनाने वाली इन आदिवासी लड़कियों ने तीन साल पहले काम संभाला। लोगों को पौष्टिक खाना नए अंदाज में मिलने लगा, तो इनके खाने का स्वाद उनकी पहचान बन गया। इतना ही नहीं, लघु व मोटे अनाज के प्रयोग से यहां जैविक खेती करने वाले किसानों को भी संरक्षण मिलने लगा।
संस्था चलाती है यह कैफे कैफे का कार्य देख रहे आकाश बताते हैं कि यहां पर लाल चावल का डोसा मिलता है जो बहुत पौष्टिक होने के साथ लोगों को काफी पसंद भी आता है। इस कैफे का संचालन जैविक अनाज उगाने वाले तीन हजार किसानों की भूमगादी संस्था करती है। यह संस्था 40 से अधिक शहरों में अपना अनाज भी पहुंचाती है। वहां भी पौष्टिक और छोटे अनाज से बने उत्पादों को काफी पसंद किया जा रहा है। धीरे-धीरे इनकी मांग अब बढऩे लगी है।
सेहतमंद खानपान से बढ़ा रुझान लक्ष्मी ने बताया कि धान की परंपरागत किस्मों को संरक्षित करने के साथ ही, लोगों तक उसका स्वाद पहुंचाने के लिए ही कुछ ऐसा करना था, जहां लोग आकर इनका स्वाद चख सकें। हमने कैफे खोला और इसे नाम भी उसी के अनुरूप दिया। कैफे में कंद की कई किस्मों की सब्जियां और भाजियां भी खाने में परोसी जाती हैं। लघु अनाज से उपमा, खीर और पुलाव भी बनाया जाता है। सेहतमंद खानपान की वजह से धीरे-धीरे लोगों का यहां रूझान बढ़ रहा है, क्योंकि यहां जो व्यंजन उन्हें खिलाए जाते हैं, उसका स्वाद उन्हें कहीं और नहीं मिलता है।