बचपन से फिल्मों के प्रति रुझान सुशील ने बताया कि फिल्मों के प्रति रुझान बचपन से रहा है, बचपन बीकानेर में गुजरा और इसके बाद जयपुर में अधिकांश समय रहा। दोनों जगह पर ही शुक्रवार का दिन फिल्मों के नाम रहता है। एक समय तो एेसा था कि सिनेमाघरों में काम करने वाले लोग भी नाम से जानने लग गए थे। अब मुम्बई में भी यही आलम है, यहां भी शुक्रवार का दिन फिल्मों के बीच ही गुजरता है। यह फिल्मों के प्रति दीवानगी का ही कारण है कि फिल्म सेंसर बोर्ड के मेम्बर के रूप में जोड़ा गया है। सुशील का कहना है कि वे इस महती जिम्मेदारी को निभाने को ले कर पूरे आश्वस्त हैं। विज्ञापन की दुनिया के अनुभव और फिल्मों से बतौर लेखक वाला जुड़ाव यहां बहुत काम आने वाले हैं।
एक ही नजर से देखनी है फिल्में उन्होंने बताया कि बोर्ड से जुडऩे के बाद अब जिम्मेदारियां बढ़ गई है और फिल्म स्क्रीनिंग का प्रोसेस बड़ा सेंसेटिव है। मैं एक ही नजर से फिल्मों को देखूंगा। सुशील बतौर को-राइटर कंगना रणौत की फिल्म ‘मणिकर्णिका’ से जुड़े हुए है और इस फिल्म की लैंग्वेज पर काफी काम किया है। सुशील कैनवास पर भी अपना कमाल दिखाते हैं, इनकी बनाई पेंटिंग्स देश-विदेश की आर्ट गैलरीज में डिस्प्ले है। वहीं हाल ही में इन्होंने नौ कुम्भ गीत रचे हैं, जिनकी काफी चर्चा बनी हुई है।