जैसलमेर

बादलो के साथ मंडरा रहा खतरा भी, हादसे को तक रहे जर्जर आशियाने

-जैसाण में मानसून सिर पर, लेकिन सर्वे करवाना भूल गए जिम्मेदार-नोटिस देकर ही की जाती है इतिश्री, पहले के हादसों से नहीं लिया सबक

जैसलमेरJul 02, 2022 / 07:53 pm

Deepak Vyas

बादलो के साथ मंडरा रहा खतरा भी, हादसे को तक रहे जर्जर आशियाने

जैसलमेर. जैसलमेर में आमजन भीषण गर्मी और दमघोटू उमस से परेशान होकर बादलों की तरफ निहार रहे हैं। शनिवार को मामूली बूंदाबांदी हुई और आगामी दिनों में तेज बारिश के पूरे आसार भी नजर आ रहे हैं। इस बीच ऐतिहासिक सोनार दुर्ग सहित रियासतकालीन पुराने शहर के कई गली-मोहल्लों में करीब दो दर्जन ऐसे जर्जर मकान हैं, जो तेज बारिश में भरभराकर गिरे तो आसपास रहने वाले लोगों के साथ राहगीरों के लिए जान की आफत साबित होने की आशंका है। गत दिनों नगरपरिषद प्रशासन की ओर से एक रस्मी अपील जारी कर ऐसे जर्जर मकानों के मालिकों से उन्हें सुरक्षित उतरवा लेने की बात कही गई। हर बार मानसून से करीब दो-तीन महीनें पहले नगरपरिषद अपने अभियंताओं के जरिए शहर का सर्वे करवाकर जर्जर और क्षतिग्रस्त मकानों को चिन्हित करवाने की कवायद करती है। बाद में इसी आधार पर संबंधित लोगों को नोटिस जारी किए जाते हैं। इस बार तो अब तक यह सब कार्य भी नहीं हुआ। जिला प्रशासन का रवैया भी इस मामले में अगंभीर ही नजर आ रहा है। ऐसे में आगामी दिनों में अगर तेज बारिश किसी अनिष्ट का कारण बनती है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? यह लाख टके का सवाल है। पिछले अर्से तेज अंधड़ की वजह से भी सोनार दुर्ग में ऐतिहासिक इमारत से पत्थर गिर चुके हैं। मूसलाधार बारिश होने पर हालात किस कदर खतरनाक हो सकते हैं, इसकी आशंका से ही इन भवनों व मकानों के आसपास रहने वाले सिहर उठते हैं।
स्वर्णनगरी में नई नहीं है समस्या
जैसलमेर में पुराने खंडहरनुमा मकानों की समस्या नई कतई नहीं है। ऐतिहासिक दुर्ग के साथ कई इलाकों में शहर में एक और दो-तीन मंजिला ऊंचाई वाले बंद मकान विकट समस्या बने हुए हैं। पिछले वर्षों के दौरान ऐसे मकानों का कुछ हिस्सा गिरने जैसे हादसे भी हुए हैं, लेकिन जिम्मेदारों और सरकारी तंत्र ने उन घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखा। इस बीच कई जर्जर मकानों को उनके मालिकों ने सुरक्षित उतरवाया भी है। फिर भी सारे मकान अब तक सुरक्षित नहीं किए गए हैं। ऐसे अधिकांश मकानों के एक से अधिक मालिक हैं और वे जैसलमेर में वर्तमान में रह नहीं रहे हैं। हर वर्ष ऐसे मकानों को सुरक्षित उतरवाने के लिए संबंधित लोगों को नोटिस जारी किए जाते हैं और चेतावनी भी दी जाती है, लेकिन इससे आगे कार्रवाई नहीं करने के कारण हर बरसाती सीजन में इन जर्जर मकानों के कारण हादसा होने का अंदेशा बना रहता है। जर्जर मकानों के आसपास रहने वाले लोगों को हर समय अपने जान-मालकी चिंता सताती है। बारिश की मार से ये जीर्ण-शीर्ण बंद मकान कभी भी भरभराकर गिर कर आसपास रहने वाले लोगों व राहगीरों के लिए आफत का कारण बन सकते हैं। बारिश के दौरान हर बार जर्जर मकानों से आसपास के लोगों को खतरे का मुद्दा उठता रहा है। नगरपरिषद और जिला प्रशासन तक लोग गुहार लगाते हैं। नगरपरिषद बीते एक दशक से प्रत्येक बरसाती सीजन में नोटिस जारी करने की कवायद करती रही है। इस अवधि में कई मकान धराशायी भी हो गए। अनेक मकानों के मालिकों ने बाद में अपनी सुविधानुसार मकान उतरवा लिए मगर अब भी कई मकान खतरे का सबब बने हुए हैं।
यहां बना हुआ है खतरा
नगरपरिषद प्रशासन की ओर से पूर्व के वर्षों में सोनार दुर्ग के साथ पुराने शहर में करीब डेढ़ दर्जन मकानों को खतरनाक भवनों के रूप में चिह्नित किया है। उनके मालिकों को नोटिस थमाए गए। हालांकि नोटिस जारी करने के बाद भी मकान जस के तस खड़े हैं। ऐसे मकान सोनार दुर्ग के ढूंढ़ा पाड़ा, व्यास पाड़ा, लधा पाड़ा और शहर के भीतर स्थित कोठारी पाड़ा, आचार्य पाड़ा, रेलानी पाड़ा, गूंदी पाड़ा, डांगरा पाड़ा, गंगणा पाड़ा आदि में आए हुए हैं। इनमें से कुछ मकानों को संबंधित लोगों ने उतरवाया भी है, लेकिन अब भी एक दर्जन मकान खतरनाक हैं। वैसे पिछले साल नगरपरिषद ने सोनार दुर्ग के 62 मकानों को जर्जर व खतरनाक मानते हुए उन्हें नोटिस जारी किया था। यहां यह भी गौरतलब है कि सोनार दुर्ग में तो अनेक लोग स्वयं ही अपने मकानों के खतरनाक मानते हुए उनकी मरम्मत के लिए अनुमति की मांग प्रशासन से करते रहे हैं।
फोटो : जैसलमेर में हादसे का सबब बन रहे जर्जर मकान।
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