2018 में अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप (donald trump) ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए बने यूनाइटेड नेशंस रिलीफ एंड वक्र्स एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) और अन्य फिलिस्तीनी सहायता कार्यक्रमों में कटौती की। विस्थापित फिलिस्तीनियों की सेवा के लिए 1950 में स्थापित पूरे मॉडल को ही खत्म करने की धमकी दी। गाजा के 14 लाख शरणार्थियों में 10 लाख लोग खाने के लिए इसी एजेंसी पर ही निर्भर हैं। खाद्य सहायता पर निर्भर इन लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। गाजा के गतिरोध, और इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का फिलहाल कोई दीर्घकालीन समाधान अब भी नजर नहीं आ रहा है।
गाजा की इस राजनीतिक और अराजक परिस्थितियों से अमरीका, अरब और यूरोप ने भी मुंह मोड़ लिया है। फिलिस्तीन के शरणार्थियों के नाम पर राजनीतिक उल्लू तो खूब सीधे किए जा रहे हैं लेकिन गाजा के निवासियों के लिए आगे कोई नहीं आता। अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए गाजा छोडऩे वालों को मिस्त्र के रास्ते अन्य देशों में जाने के लिए इजरायल के सैन्य अधिकारियों को मोटी रिश्वत खिलानी पड़ती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के मध्य से अब तक करीब 35 हजार से 40 हजार लोग अब तक गाजा छोड़ चुके हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि हमास शासन ने अब डॉक्टरों के देश छोडऩे पर पाबंदी लगा दी है क्योंकि यहां अब बहुत कम डॉक्टर बचे हैं।
गाजा और उसके निवासियों के लिए बीता दशक एक अंधेरा युग रहा है। आम फिलिस्तीनी खुली जगह की भी जेल से तुलना करता है। 2007 में, चरमपंथी समूह हमास ने अपने प्रतिद्वंद्वी समूह फतह के नेतृत्व वाले फिलिस्तीनी प्राधिकरण को बाहर करने के बाद नियंत्रण कर लिया। यह क्षेत्र इजरायल (Israel) के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में स्थित है। जवाब में इजऱाइल और मिस्र (greece) ने सुरक्षा चिंताओं और हमास को बाहर निकालने के उद्देश्य का हवाला देते हुए जमीनी और समुद्री नाकाबंदी लगाई। लेकिन जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ। 2009 के बाद हमास और इजऱाइल ने तीन खूनी युद्ध लड़े हैं जिनमें अनगिनत निर्दोष लोगों की जानें गई हैं। इस बीच इजऱायल ने अपना प्रभाव कायम करते हुए नीतियों को नियंत्रित करना शुरू कर दिया कि कौन गाजा में प्रवेश करेगा और कौन बाहर जाएगा। हमास के दमनकारी और रूढ़िवादी शासन के कारण लोग खुद को कतरा-कतरा निचोड़ा हुआ महसूस करते हैं।