अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर आक्रमण के दौरान बसा था ये गांव
अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर आक्रमण के दौरान बसा था ये गांव
700 वर्ष प्राचीन है करौली-गंगापुरसिटी की सीमा पर स्थित सलेमपुर गांवरणथम्भौर दुर्ग पर विजय प्राप्त करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था। उसका सैन्य बल आस-पास के क्षेत्र में डेरा डाल कर कई दिनों तक उचित अवसर की तलाश में पड़ा रहा था। इसी दौरान अलाउद्दीन खिलजी की सेना के सलीम खाँ ने अपने नाम पर सलेमपुर गाँव को बसाया। यह गांव कभी धाकड़ जाति बाहुल्य गांव हुआ करता था।
अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर आक्रमण के दौरान बसा था ये गांव,अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर आक्रमण के दौरान बसा था ये गांव,अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर आक्रमण के दौरान बसा था ये गांव
अलाउद्दीन खिलजी के रणथम्भौर आक्रमण के दौरान बसा था ये गांव 700 वर्ष प्राचीन है करौली-गंगापुरसिटी की सीमा पर स्थित सलेमपुर गांव
रणथम्भौर दुर्ग पर विजय प्राप्त करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था। उसका सैन्य बल आस-पास के क्षेत्र में डेरा डाल कर कई दिनों तक उचित अवसर की तलाश में पड़ा रहा था। इसी दौरान अलाउद्दीन खिलजी की सेना के सलीम खाँ ने अपने नाम पर सलेमपुर गाँव को बसाया। यह गांव कभी धाकड़ जाति बाहुल्य गांव हुआ करता था।
सलेमपुर के अधिसंख्य पठान मुसलमानों के पूर्वज उसी सैन्यदल के सदस्य होने की संभावना मानी जाती हैं। सलेमपुर से पहले यहाँ नसीरपुरा आबाद था, जिसके अवशेष महताब की धरती के आसपास मिलते हैं। वर्तमान में यह नौतोड़ के नाम से जाना जाता है। पास में ही रजैल भी है। सलेमपुर में अलाउद्दीन के समय जमीदारी पठानों की थी, लेकिन मुगलकाल से आज तक पठानों, मीनाओं के अलावा अन्य जातियों की जमीदारी चली आ रही है।
करौली से 30 किमी पश्चिम में कुशालगढ़ (गंगापुरसिटी) के निकट बसे सलेमपुर गांव पर करौली एवं जयपुर रियासत की सीमा मिलती थी। सलेमपुर गांव के पास कुडग़ांव की ओर पूर्व दिशा में एक छतरी है, जिसे सरहद की छतरी कहते हैं। सलेमपुर के पश्चिम में रियासत कालीन तमोलीपुरा गांव है। यहां वर्तमान विद्यालय के ऊपर वाली पहाड़ी पर पुराने किले के खंडहर, मंडरायल पर 1504 ई0 में सिकंदर लोदी के आक्रमण के बाद किलेदार रहे मियां मकन की दरगाह व कब्र है। यही पहाड़ी मदार साहब का चिल्ला कहलाती है। इतिहास के पन्नों के अनुसार इस चिल्ले पर किसी मुस्लिम फकीर ने 40 दिन तक उपवास किया था। पहाड़ी पर एक टूटी गढ़ी है, ,जो बादशाह के किसी अधिकारी ने बनाई थी।
उस समय दिल्ली-बयाना-रणथंभौर का रास्ता सलेमपुर होकर गुजरने के कारण सैन्य दलों का आना-जाना बना रहता था। गाँव के बीच पन्नालाल उपाध्याय द्वारा निर्मित मंदिर तथा दो अन्य ठाकुरजी के मंदिर एवं शिवालय भी आस्था के केंद्र हैं। ग्रामीणों के अनुसार बोहरे बिहारी द्वारा निर्मित हवेली सलेमपुर की सबसे पहली हवेली है। बताते हैं इस हवेली के निर्माण पर उस समय 250 रुपए खर्च हुए थे। पहाड़ी पर डूंगरी वाले हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर भी है।
यहाँ शुरू से पेयजल की समस्या रही है। करौली के राजा प्रताप पाल के समय में 175 वर्ष पहले यहाँ दाऊद खाँ रिसालदार ने एक पक्का कुआं बनवाया था। पानी की समस्या को देखते हुए करौली के राजा मदनपाल ने 1868 में एक अन्य पक्का कुआं भी बनवाया। बुजुर्गों के अनुसार ‘खड़ी वाले कुएÓ का पानी पौष्टिक एवं मीठा होने से गंगापुर का एक व्यवसायी पीने के लिए प्रतिदिन कहार से पानी मँगवाता था। राजा भौमपाल द्वारा निर्मित भौमसागर कुआं भी गांव का प्रमुख
जल स्रोत है।
पहले सलेमपुर के पठानों में मम्मू खां, समद खां, काले खां , नबाब खां, अब्दुल रसूल, पंडित देवनारायण, राधेश्याम, सुआ लाल, केदार सेठ, पूर्व सरपंच पंडित रामचरण एवं बृजलाल मीना, भंवर पटेल आदि प्रभावशाली ग्रामीण थे।
वर्तमान में बसेड़ी विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा, करौली के पूर्व विधायक सुरेश मीणा, भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी पीआर मीणा , शिक्षा अधिकारी रहे इंद्रेश तिवाड़ी डॉ. नरेन्द्र गुप्ता प्रोफेसर कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर, साहित्यकार प्रभाशंकर उपाध्याय, विकास शर्मा एवं गोविदपुरा के प्रेमसिंह मीणा रेलवे सेवा अधिकारी सलेमपुर की शान हैं ।
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