पुण्यों को अर्जित करने में है जीवन की सार्थकता
आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि इस जगत में दो प्रकार के लोग है।
पुण्यों को अर्जित करने में है जीवन की सार्थकता
चेन्नई. कोलातूर स्थित विजय प्रशांत दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि इस जगत में दो प्रकार के लोग है। पहले वो जो तिजोरी में से सौ रुपया निकाल कर दस हजार डालते है। दूसरे वो हैं जो तिजोरी से पैसा निकालते है डालते नहीं है। ऐसे लोग गधे के समान है। गाय जब चरती है तो ऊपर की घास ही खाती है,मूल को छोड़ देती है। कुछ इंसान पुण्यों का जितना फल बोते है उतना ही पुण्य को बढ़ाते है। जो लगातार पुण्य को अर्जित करते है, वे गाय का भांति करुणा , प्रेम, वात्सल्य पे्रमी हंै। यदि पुण्य का सदुपयोग है तो जीवन सार्थक है। मन हिमालय जैसा है लेकिन इसकी बर्फ छोटी-छोटी बातों पर पिघल रही है। पत्तों के समान पुण्य झर रहा है। हमारी आत्मा सागर समान है। दान, पूजा, तप, त्याग से निर्झर बह रहा है। घोड़ा लगाम से वश में होता है। मन संयम से वश में होता है। धर्म कहता है कि यदि इस भव में त्याग है तो परभव में संताप नहीं मिलेगा। धर्म, पुण्य, दान और त्याग से अर्जित होता है। पाप में भविष्य भंयकर है और धर्म में भविष्य क्षेमंकर है।
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