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जब दो नोबल प्राइज विजेताओं ने एक-दूसरे को जड़ दिया घूसा, ऐतिहासिक बन गई चोट वाली तस्वीर

घटना के बाद दोनों में मनमुटाव रहा, लेकिन एक ने अपने बेटे का नाम दोस्त के नाम पर ही रखा, यहां जाने पूरा मामला…

नई दिल्लीNov 16, 2017 / 03:45 pm

Navyavesh Navrahi

gabriel garcia marquez

gabriel garcia marquez

नई दिल्ली| साहित्य की दुनिया के लोगों को शांत माना जाता है। वे बातचीत से मामलों को हल करने का प्रयास करते हैं। पर इस क्षेत्र के दो महान लेखकों का एक मामला ऐसा भी है, जिसमें भविष्य में नोबेल प्राइज हासिल करने वाले दो दिग्गज लेखकों में से एक ने दूसरे को घूंसा तक जड़ दिया था। बात यहीं खत्म नहीं हुई, बल्कि घूसा जड़े हुए चेहरे की एक तस्वरी तीसरे दोस्त ने खींची, जो ऐतिहासिक बन गई। साहित्य के जगत में आज भी ये तस्वीर चर्चा का विषय है। जानेमाने अनुवादक मनोज पटेल ने अपने ब्लॉग पर इस वाक्या का जिक्र किया है। यहा ल्योसे के विचारों से भी रुबरू होइए, जो उक्तियों की तरह है।
क्या हुआ था?
दरअसल जो तस्वीर आप देख रहे हैं, ये महान लेखक गाब्रिएल गार्सिया मार्केज की है, जो उनके दोस्त राद्रिगो मोया ने 1976 में ली थी। इसके कुछ पहले ही एक मेक्सिकन थिएटर में एक और महान लेखक मारियो वर्गास ल्योसा ने मार्केज को घूसा जड़ दिया था। इस घूसे के निशान इस तस्वीर में बाईं आंख एवं नाक पर देखे जा सकते हैं। इस घटना के लिए राजनीतिक से ज्यादा व्यक्तिगत कारणों को जिम्मेदार बताया जाता है जिनकी यहां चर्चा करना उद्देश्य नहीं है। यह तस्वीर हमें याद दिलाती है कि 41 साल पहले एक महान लेखक को, जिसे 6 साल बाद नोबेल पुरस्कार मिलना था, एक ऐसे लेखक ने घूसा मारा था जिसे 2010 में नोबेल सम्मान से नवाजा जाना था। इस घटना से पहले दोनों महान लेखक अच्छे दोस्त थे। यहां तक कि ल्योसा ने अपने दूसरे बेटे का नामकरण भी गाब्रिएल किया था।
कौन थे दोनों महान लेखक
मारियो वर्गास ल्योसा, जन्म : 21मार्च, 1936 – ये पेरू के लेखक, राजनीतिज्ञ, पत्रकार, निबंधकार, प्रोफेसर थे। सन 2010 में इन्हें साहित्य का नोबेल दिया गया। लियोसा ने 30 से अधिक उपन्यास, नाटक लिखे हैं। लियोसा ने 1990 में पेरू के राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा था, पर हार गए।
गेब्रियल गार्सिया मार्केज (6 मार्च 1927 – 17 अप्रैल 2014)- ये भी मशहूर लेखक थे। 1940 में रोम और पेरिस में स्पेक्टेटर के संवाददाता रहे। वामपंथी विचारधारा की ओर झुकाव के कारण उन पर अमरीका और कोलम्बिया सरकारों ने देश में प्रवेश पर रोक लगाई थी। प्रथम कहानी-संग्रह लीफ स्टार्म एंड अदर स्टोरीज 1955 में प्रकाशित हुआ। उपन्यास सौ साल का एकांत (वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सालीच्यूड) को 1982 में नोबल पुरस्कार से नवाजा गया।

यहां प्रस्तुत हैं ल्योसा की उक्तियों जैसी रचनाएं…

उसने कहा था…
1 – यदि आप लेखक होने की वजह से मार दिए जाते हैं तो यह आपके जानते, आपके प्रति प्रदर्शित किया गया अधिकतम सम्मान होगा।
2 – यह सच नहीं है कि सिद्धदोष अपराधी जानवरों की तरह रहते हैं, जानवरों को तो घूमने–फिरने के लिए ज्यादा जगह हासिल होती है।
3 – कितना भी क्षणभंगुर क्यों न हो, उपन्यास कुछ तो है जबकि हताशा कुछ भी नहीं।
4 – साहित्यिक रचना और राजनीतिक गतिविधि में एक किस्म की असंगति होती है।
5 – किताब लिखना नितांत अकेलेपन का काम है। आप बा$की दुनिया से कटे अपनी धुन और ख्यालों में डूबे हुए होते हैं।
6 – लेखक अपने खुद के प्रेतों के ओझा होते हैं।
7 – लेकिन मेरे पास है क्या ? बस वो बातें जो मुझसे कही गईं, और वो जो मैनें दूसरों से कहीं।
8 – कोई खुद से नहीं लड़ सकता क्योंकि इस लड़ाई में हारने वाला एक ही होगा।
9 – एक उपन्यास के लिए यह दुर्लभ और लगभग असंभव है कि उसका वाचक एक ही हो।
10 – विज्ञान अब भी घुप्प अंधेरी गुफा में दिपदिपाती हुई मोमबत्ती ही है।
11 – जिन्दगी गंदगी का तू$फान है जिसमें कला हमारी इकलौती छतरी है।
12 – श्रृंगारिकता का अपना नैतिक औचित्य होता है क्योंकि इसके अनुसार मेरे लिए मज़ा ही सबकुछ है। यह वैयक्तिक प्रभुसत्ता का वृतांत है।
13 – आप किसी को सर्जनात्मकता नहीं सिखा सकते – कि अच्छा लेखक कैसे बना जाए। लेकिन आप एक युवा लेखक को अपने अन्दर ही यह पाने में मदद कर सकते हैं कि वह किस तरह का लेखक बनाना चाहेगा।

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