नई दिल्ली। वन रैंक-वन पेंशन की मांग को लेकर काफी बवाल मचा हुआ है। पूर्व सैनिक इस मांग को लेकर पिछले करीब दो महीने से जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं। वहीं विपक्ष भी सरकार को इस मुद्दे पर लगातार घेर रही है, लेकिन आखिर क्या है वन रैंक-वन पेंशन और पूर्व सैनिक इसकी मांग क्यों कर रहे हैं, हम आपको बताते हैं।क्या है वन रैंक-वन पेंशनजब दो सैनिक एक ही पद पर और एक समय तक काम करके सेवानिवृत होते हैं और उनके रिटायरमेंट में कुछ सालों का अंतर आ जाए और उस बीच नया वेतन आयोग आ जाता है, तो दोनों सैनिकों की पेंशन में काफी अंतर आ जाता है। यानी 2006 से पहले रिटायर होने वाले सैन्य कर्मियों को उनके समान रैंक वालों और जूनियरों से कम पेंशन मिलती है। मसलन 1995 में रिटायर होने वाले एक मेजर जनरल को 30 हजार 350 रूपए पेंशन मिलती है, जबकि 2006 के बाद रिटायर होने वाले इसी रैंक के अधिकारी को 38 हजार 500 रूपए पेंशन मिलती है। इसी तरह 2003 में रिटायर होने वाले कर्नल को 26 हजार 150 रूपए पेंशन मिलती है, जबकि इस साल रिटायर होने वाले कर्नल रैंक के अधिकारी को 34 हजार रूपए पेंशन मिलती है। वहीं सैनिकों की पेंशन की तुलना सामान्य सर्विस से नहीं की जानी चाहिए। जहां सामान्य सरकारी नौकरी में व्यक्ति 58 से 60 साल तक पेंशन पाता है। वहीं सैनिकों 33 साल में ही रिटायर्ड होना पड़ता है। अंगे्रजों की हुकुमत के दौरान सैनिकों की पेंशन उनके वेतन का 80 प्रतिशत होती थी। हालांकि भारत सरकार ने 1957 में इसे कम दिया और अन्य क्षत्रों की पेंशन बढ़ानी शुरू कर दी। विदेशों में क्या है स्थिति– अमकीका में सैनिकों को आम सेवाओं के मुकाबले 15 से 20 प्रतिशत तक अधिक वेतन मिलता है।– ब्रिटेन में सैनिकों दस प्रतिशत वेतन अधिक मिलता है। – फ्रांस में 15 प्रतिशत तक वेतन अधिक मिलता है।– पाकिस्तान में भी 15 प्रतिशत अधित वेतन मिलता है।– जापान में आम सेवाओं के मुकाबले 19 से 29 तक वेतन अधिक मिलता है।