क्यों अहम है सिंधु नदी संधि?
अगर इन नदियों का पानी रोका जाता है तो कृषि आधारित पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना होगा
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के उरी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सिंधु नदी समझौते पर विचार कर रहा है। अगर यह संधि रद्द की जाती है तो सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान को उठाना पड़ेगा। सिंधु ही नहीं, संधि में दर्ज चिनाब झेलम भी पाकिस्तान के लिए अहम है। पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती हैं।
सिंधु नदी समझौते को लागू करने में करीब एक दशक का समय लग गया था। विश्व बैंक की मध्यस्ता के बाद 19 सितंबर 1960 को यह संधि लागू की गई थी। इस संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के बाद सिंधु घाटी की 6 नदियों का जल बंटवारा हुआ था।
अगर इन नदियों का पानी रोका जाता है तो कृषि आधारित पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना होगा। पाकिस्तान ने इन नदियों पर बांध भी बना रखे हैं जिससे बिजली का उत्पादन होता है। अगर यह समझौता टूटता है तो ये ठप पड़ जाएंगे।
भारत के पास पूर्वी पाकिस्तान की तीन नदियों का नियंत्रण है, जबकि पश्चिमी पाकिस्तान की तीन नदियों का नियंत्रण पाकिस्तान के पास है। सिंधु, चिनाब और झेलम नदियां पाकिस्तान से निकलती हैं और इनका पानी रोकने के लिए भारत को बांध बनाने होंगे जिसके लिए काफी समय और पैसों की जरूरत होगी।
वहीं, कई नदियां चीन होते हुए भारत आती हैं और सिंधु समझौता को तोडऩे का मुद्दा बनाकर चीन इन नदियों का पानी रोक सकता है जिससे नुकसान भारत का होगा। भारत अपनी 6 नदियों का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को देता है, जबकि 20 प्रतिशत पानी ही हमारे हिस्से आता हे।
समझौता तोड़ा तो…
अगर भारत यह समझौता तोड़ता है तो आर्थिक तौर पर पाकिस्तान को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। हालांकि, चीन अगर पाकिस्तान के समर्थन में आता है तो भारत को भी नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि सिंधु नदी का उद्म स्थल चीन है। अगर भारत यह संधि तोड़ता है तो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ बोलने का एक और मौका मिल जाएगा। भारत इस संधि को इस लिए भी नहीं तोड़ सकता क्योंकि यह एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है और इसपर भारत अकेले फैसला नहीं ले सकता।
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