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खेलों में भारत के पांच ऐसे द्रोणाचार्य, जिनके अर्जुन के आगे नतमस्तक है दुनिया

टीचर्स डे पर पेश है, खेल की दुनिया के चंद नामचीन और गुमनाम द्रोणाचार्यों की संघर्षगाथा। 

जयपुरSep 05, 2017 / 07:06 am

PRABHANSHU RANJAN

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नई दिल्ली। हर कामयाब इंसान के पीछे सबसे बड़ा योगदान उसके गुरु का होता है। गुरु न उसे जीतना सीखाते है बल्कि विपरित परिस्थिति में भी हौसला देते है। आज टीचर्स डे है। इस मौके पर हर कोई अपने गुरु को याद कर रहा है। गुरु चाहे किसी भी पेशे के हो, उनका सम्मान, उनकी उपलब्धि उनके शिष्यों की कार्यकुशलता से चिन्हित होती है। खेल की दुनिया में भी कई ऐसे द्रोणाचार्य हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन लगा कर शिष्यों को इस काबिल बनाया कि वे देश का मान बढ़ा सकें। patrika.com पर पेश है ऐसे ही चंद द्रोणाचार्यों की संघर्षगाथा।

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पुलेला गोपीचंद
पीवी सिंधु, साइना नेहवाल आज पूरी दुनिया में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। भारतीय बैडमिंटन क्वीन के रूप में इन दोनों ने पूरी दुनिया में अपनी कामयाबी की स्वर्णिम गाथा छोड़ी हैं। लेकिन इन दोनों को इस काबिल बनाने में जिस इकलौते व्यक्ति का हाथ है, वो है पुलेला गोपीचंद। साल 2001 में चीन के चेन होंग ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में 15-12,15-6 से हराते वाले गोपीचंद ने खेल से सन्यास लेने के बाद बैडमिंटन एकमेडी खोली। हैदराबाद में स्थापित गोपीचंद की एकमेडी से सिंधु और साइना के अलावा और भी कई खिलाड़ी निकले हैं और आगे भी निकलेंगे।

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तुषार आरोठे
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कामयाबी ने भारत का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया है। विश्व कप के फाइनल में टीम भले ही हार गई हो, लेकिन टीम ने जैसा खेल प्रदर्शन दिखाया, उसकी चारों ओर तारीफ की गई। मैदान में खेलने का जिम्मा भले ही टीम के खिलाड़ियों की रही हो, लेकिन टीम की रणनीति बनाने से लेकर खिलाड़ियों के स्टाईल को तय करने की भूमिका में तुषार आरोठे रहें। साल 2017 में ही टीम की पूर्व कोच पूर्णिमा रॉव की जगह तुषार को कोच बनाया गया था। 17 सितंबर, 1966 को गुजरात के बड़ोदा में जन्मे तुषार बालचंद आरोठे ऑलराउंडर के तौर पर रणजी खेल चुके हैं। तुषार ने लंबे समय तक कप्तानी भी की और बड़ोदा रणजी टीम के कोच भी रहे। इनके बारे में कहा जाता है कि ये केवल प्लान ही नहीं बनाते बल्कि उसे लागू भी करते हैं।

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रमाकांत आचेरकर
ये वो शख्स हैं, जिन्होंने क्रिकेट की दुनिया का साक्षात्कार सचिन तेंदुलकर से कराया। आज वो अपने जीवन के आखिरी दौर में हैं लेकिन उनकी उपलब्धि आज भी कायम है। भारतीय क्रिकेट टीम का लंबे समय तक हिस्सा रहे दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने कई बार अपनी सफलता का श्रेय अपने गुरू रमाकांत आचरेकर को दिया है। सचिन खुद कई बार कह चुके हैं कि अगर ‘आचरेकर सर’ नहीं होते तो शायद वह इस मुकाम को हासिल नहीं कर पाते। आचरेकर सरल स्‍वभाव के साथ हीरे को तराशने में माहिर बताए जाते हैं।

 

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जॉन राइट
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कोच जॉन राइट की टीम के पहले विदेशी कोच हैं। एक विदेशी होने के बावजूद राइट ने टीम के साथ मिलकर वो कर दिखाया, जो कई भारतीय कोच नहीं कर पाए। साल 2000 में जॉन राइट के रूप में टीम इंडिया को पहला विदेशी कोच मिला। कोच के रूप में उनका कार्यकाल काफी सफल रहा। विदेशी धरती पर भारत की जीत, 2003 वर्ल्ड कप के फाइनल तक भारत का सफर और सौरभ गांगुली की साहसिक कप्तानी का श्रेय कोच राइट को भी जाता है। जॉन राइट ने 2000 से लेकर 2005 तक भारतीय टीम को बतौर कोच अपनी सेवाएं दीं। ये वो दौर रहा, जब लंबे समय बाद क्रिकेट की दुनिया में भारतीय टीम के सितारे बुलंदी पर पहुंचे।

 

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गैरी किस्टर्न
टीम इंडिया के सबसे सफलतम कोचों के रूप में गैरी किस्टर्न को माना जाता हैं। कस्टर्न 2008 से 2011 के बीच टीम के कोच रहे। गैरी की सबसे बड़ी सफलता टीम को 2011 में विश्वकप दिलवाने में की रही। कस्टर्न के तीन वर्ष के कार्यकाल में भारत ने आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड से सीरीज जीतीं और दक्षिण अफ्रीका से टेस्ट सीरीज ड्रा कराई जबकि विश्वकप उनकी बड़ी उपलब्धि रहा जिसके ठीक बाद वह अपने पद से हट गये थे।

 

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काफी लंबी है ये फेहरिस्त
भारतीय खेल दुनिया से ताल्लुक रखने वाले ऐसे सफल द्रोणाचार्यों की फेहरिस्त काफी लंबी है। इसमें अलग-अलग खेल के कई नामचीन तो कई गुमनाम चेहरे भी हैं। शिक्षक दिवस के इस पाक मौके पर patrika.com उन सभी को याद करती है। साथ ही उनके बेहतर भविष्य की कामना करती है।

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