वैसे जेवलिन थ्रो देखने में आसान खेल लगता है लेकिन ऐसा है नहीं। जेवलिन में ताकत और तकनीक दोनों बहुत अहम होती हैं। जेवलिन थ्रो करते समय एथलीट को दो चीजों का खास ध्यान रखना पड़ता है, दौड़ और कदमों को जमीन पर रखने का तरीका।
जेवलिन को उठाने के कई तरीके होते है और इसी तरह उसे फेंकना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। जेवलिन छोड़ते समय एथलीट को अपने हाथ के एंगल, शरीर की पोजिशन और आखिरी थ्रो मूवमेंट पर ध्यान देना होता है।
अमरीकन ग्रिप –
यह जेवलिन पकडऩे का सबसे आसान तरीका है। इसमें अंगूठा और पहली अंगुली ग्रिप कॉर्ड के पीछे सपोर्ट देती है।
फिनिश ग्रिप-
इसमें जेवलिन को हथेली पर रखा जाता है और फिर अंगूठे से ऊपर से जेवलिन पर कसा जाता है। नीरज चोपड़ा इसी ग्रिप का इस्तेमाल करते हैं।
वी ग्रिप या द क्लॉ –
इसमें पहली व दूसरी अंगुली के बीच बनने वाले वी के बीच भाला रहता है।
द रनअप एंड क्रॉसओवर-
भाला फेंकने से पहले खिलाडी करीब 15 कदम की तेज दौड़ लगाता है, जिसे रनअप कहा जाता है। इस दौड़ के अखिर के कुछ कदम क्रॉसओवर स्टेप्स कहलाते हैं।
इस आखिरी स्टेप में एथलीट दौड़ द्वारा अर्जित की हुई गति भाले में डालने की कोशिश करता है। इस आखिरी स्टेप को कामयाब करने के लिए खिलाड़ी के पैरों, टांगों और एडिय़ों का मजबूत होना जरूरी है। इसीलिए नीरज चोपड़ा खेल से पहले हाई जंप का अभ्यास करते थे।
द थ्रो-भाला फेंकने के लिए सबसे अनुकूल एंगल 32 डिग्री से 36 डिग्री के बीच होना चाहिए। वहीं, भाला ज्यादा ऊंचा नहीं जाना चाहिए। फाउल लाइन-
एथलीट को यह भी ध्यान रखना होता है कि वह निर्धारित लाइन पार न कर दे। ऐसा करने पर खिलाड़ी का फेंका गया थ्रो फाउल माना जाता है।