जांच शुरू हुई, जिसमें आधा दर्जन से अधिक ब्रांचों में यह घपला सामने आया। रावला की तरह बींझबायला में करीब पांच करोड़ के लोन बांटे गए। ये सभी लोन कर्जमाफी 2019 में माफ भी हो गए हैं। इनके लोन के बदले किसानों से मोटा कमीशन लेने का आरोप है। जिले स्तर की प्राथमिक जांच में पन्द्रह करोड़ रुपए के लोन वितरित करने की बात सामने आई है। विस्तृत जाच में यह आंकड़ा और बढऩे की आशंका है।
सहकारी बैंक व सहकारी समिति अल्पकालीन कृषि ऋ ण देती है। इस योजना में ऋ ण के बदले किसान को ब्याज नहीं चुकाना होता है। ब्याज के लिए राज्य व केन्द्र सहकार अनुदान देती है। राष्ट्रीयकृत बैंक लोन के बदले किसान की जमीन गिरवी रखते हैं, जबकि सहकारी बैंक जमीन गिरवी नहीं रखते। ऐसे में किसान का प्रयास रहता है कि अधिक से अधिक रुपए सहकारी बैंक से लोन के रूप में लिए जाएं। किसान को कितना लोन देना है इसके लिए अधिकतम सीमा तो निर्धारित है, लेकिन न्यूनतम सीमा निर्धारित नहीं है। ऐसे में बैंक अधिकारी की मर्जी पर निर्भर करता है कि किस किसान को कितना कर्ज मिलेगा। इसी का फायदा उठाते हुए कमीशन का खेल चलाया जाता है।