इसके अलावा बड़े कार्यक्रम, लंगर या वैवाहिक समारोह जैसे भी ग्रामीण की बजाय शहरी एरिया में अधिक होने से मसालों की खपत भी रहती है। व्यापारियों का मानना है कि मिर्च, हल्दी, जीरा, धनिया सभी आइटम बाहर से आती है।
लेकिन यहां पिसाई कर पूरे इलाके में आपूर्ति होती है। जोधपुरी मिर्च के बारे में व्यापारियों का कहना है कि दरअसल आंध्रप्रदेश और तेलगांना प्रदेश से मिर्च की आपूर्ति सीधे जोधपुर आती है। इस कारण वहां के व्यापारी जोधपुरी मिर्च के रूप में प्रचारित करते है। जोधपुर से ही श्रीगंगानगर जिले में ये मिर्च सप्लाई होती है। इसी प्रकार हल्दी की आवक महाराष्ट्र के सांगली से होती है।
वहीं धनिया कोटा जिले की रामगंज मंडी से आता है। वहां प्रचुर मात्रा में धनिया श्रीगंगानगर सहित पूरे देश के लिए सप्लाई होता है। इसी प्रकार जीरा भी नागौर जिले के मेड़ता सिटी से आता है।
इस एरिया में जीरे की अधिक बुवाई होती है। यदि वहां जीरे की फसल खराब होती या मांग के अनुरुप सप्लाई नहीं होती है तो जीरे की एरिया की सबसे बड़ी मंडी गुजरात के ऊना से होती है।
मसालों का कुटीर उद्योग हर साल बढ़ रहा है। मांग अधिक होने के कारण सप्लाई पर दबाव रहता है। वहीं गली मोहल्ले में परचून की दुकान पर मसालों की बिक्री अधिक रहती है। परचून की आइटम बेचने के लिए अब डिपार्टमेंटल स्टोर पर मसाले पैकिंग से बिकने लगे है। वहीं कई ब्रांडेड कंपनियां भी इस मसाले के कारोबार में आ गई है।
लेकिन सब्जी के अधिक मसालों को लेकर भले ही बड़ी कंपनियां मार्केट में आ चुकी हो लेकिन जिले में लोकल मसालों का दबदबा अब भी कायम है। करोड़ों रुपए के सालाना टर्न ओवर होने वाले इस कारोबार से करीब दस हजार लोगों की रोजीरोटी जुड़ी हुई है।
व्यापारी पवन नारंग का कहना है कि इलाके में मसालों की आइटम जैसे मिर्च, जीरे, हल्दी, धनिया आदि की पैदावार नहीं होती। वातावरण अनुकूल हो जाएं तो यह पैदावार यहां भी हो सकती है।