यह जांच अब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की टीम कर रही है। ब्यूरो ने स्वास्थ्य निरीक्षक सुमित फुटेला के पॉलीथीन थैली विक्रेता से दस हजार रुपए मंथली लेने के आरोप में रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार करने के बाद यह पूरी प्रक्रिया संदेह के दायरे में आ गई है।
ब्यूरो के अधिकारियों का कहना है कि जांच में साक्ष्य जुटाए जा रहे है, यदि इन साक्ष्यों में पूरे गठित दल सदस्यों की भूमिका भी फुटेला के साथ सक्रिय थी तो सह आरोपी बनाया जा सकता है। लेकिन अभी यह प्रक्रिया विचाराधीन है।
एसीबी ने जैसे ही फुटेला को दस हजार रुपए की रिश्वत लेते गिरफ़्तार किया तो उसकी भनक लगते ही नगर परिषद में कार्यरत एक बाबू भूमिगत हो गया। यह बाबू फुटेला का राजदार बताया जा रहा है। इस बाबू के बारे में एसीबी ने जांच की है या नहीं, यह पुष्टि अब तक नहीं हो पाई है। लेकिन जरूर है कि इस बाबू से पूछताछ होने की अधिक संभावना जताई जा रही है। एसीबी के एडिशन एसपी राजेन्द्र डिढारिया ने बताया कि अभी तक इस प्रकरण के संबंध में जयपुर में एसीबी थाने में एफआईआर दर्ज कराने की प्रक्रिया चल रही है।
सोमवार को एफआईआर की प्रति मिलने की उम्मीद है। इस मामले की जांच के लिए अलग से अनुसंधान अधिकारी को जांच सौंपी जाएगी।
इस बीच नगर परिषद की ओर से हर सप्ताह मौसमी बीमारियों की मीटिग में पॉलीथीन थैली पकडऩे का दावा करते हुए रिपोर्ट प्रेषित की जाती थी। कलक्टर की अध्यक्षता में कलक्ट्रेट में होने वाली इस मीटिंग में नगर परिषद पॉलीथीन के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के अलावा कैटल फ्री सिटी मुहिम के आंकड़े, सफाई के संबंध में कचरा उठाव करने आदि का आंकड़ा भी प्रेषित किया जाता था।
लेकिन हकीकत में नगर परिषद के स्टोर में इतना पॉलीथीन थैलियों के जब्त का माल नहीं है, ऐसे में आंशका जताई जा रही है कि यह माल नगर परिषद का ही कार्मिक बाजार में फुटकर दुकानदारों और सब्जी रेहडिय़ों को सस्ते दामों पर बेच रहा था।
इस पहलू की जांच भी एबीबी ने अपनी जांच में शामिल किया है।
एसीबी अधिकारियों की जांच में स्टोर से जुड़े कार्मिक या जांच दल के सदस्य कार्मिक इस रिश्वत के खेल में भागीदार थे या नहीं लेकिन इतना तय है कि यह पूरा मामला पॉलीथीन थैली विक्रेताओं के सामूहिक रूप से उठाए गए कदम का एक हिस्सा हो सकता है।
इन विक्रेताअेां ने पिछले साल नगर परिषद आयुक्त के समक्ष अपनी पीड़ा भी जताई थी कि प्रतिबंधित पॉलीथीन के नाम पर उनको प्रताडि़त किया जा रहा है, यह न्यायोचित नही है। लेकिन तत्कालीन आयुक्त ने सरकार के आदेश की बात कहकर उनकी सुनवाई नहीं की।