इसकी बानगी तहसील के समीपवर्ती गांव 6 बीएलएम के किसान के साथ देखने को मिलती है। किसान नक्षत्र सिंह ने सरकार की योजना से प्रोत्साहित होकर करीब आधा दशक पूर्व वर्ष 2011 में अपने खेत मे 2011 में 8 बीघा जमीन में 312 प्लांट खजूर के लगाए। लेकिन छह साल बाद भी खजूर की खेती में लाभ नहीं मिल रहा है। इस बार किसान की मेहनत से खजूर की फसल तो बम्पर हुई लेकिन बाजार में लागत नहीं मिलने से किसान काफी मायूस है।
किसान ने बताया कि खजूर की पौध लगाते समय सरकार ने 90 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया था और बाजार में अच्छे भाव दिलाने का भी वादा किया था। किसान कड़ी मेहनत से पिछले छह वर्षों से खजूर के पौधों की सम्भाल कर रहा है। पिछले तीन वर्षों से बाग में खजूर की पैदावार भी अच्छी हो रही है। लेकिन बाजार में इसका उचित मोल नहीं मिल रहा है। वहीं किसान को बाजार में फल सप्लाई करने के लिए सरकार से किसी भी प्रकार की सहायता प्राप्त नही हो रही है। जिसके परिणामस्वरूप किसान को अपने स्तर पर ग्राहक ढूंढने पड़ रहे है। हाल ही में खजूर का सैम्पल दिल्ली की एक फर्म को दिया गया है, यदि यह पास हो जाता है तो खजूर का विदेशों में निर्यात होगा और किसान को स्थानीय बाजार पर निर्भर नही रहना पड़ेगा।
48 घंटों में होता है खराब
– बाग की सारसंभाल कर रहे किसान के पुत्र मनमीत सिंह ने बताया खजूर का फल बाजार में 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेच रहे हंै। बाग से प्रतिदिन लगभग 2 क्विंटल खजूर उतर रहा है। लेकिन सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिलने पर बाजार में अपने स्तर पर खजूर बेचना पड़ता है। प्रतिदिन लगभग बीस किलो खजूर ही बेच पा रहे हैं। जिससे शेष फल सड़ रहे हैं। खजूर बाग से लाने के बाद महज 48 घन्टो मे खराब होना शुरू हो जाता है । ऐसे मे बाहर निर्यात करना हमारे लिए काफी मुश्किल है।
किसान का कहना है कि यदि सरकार अपने वायदे के अनुसार खजूर की खरीद करें तो, इधर-उधर भटकना नहीं पड़ेगा। अन्यथा किसान को मजबूरन खजूर का बाग उखाडकर परम्परागत खेती की औऱ रुख करना पडेगा।