ऐसे में ग्रामीण होली की खुशियां कैसे मना सकते है। ग्रामीणों ने होली न मनाने का निर्णय लिया और पुलवामा हमले के शहीदों के परिवारो के दुख में शामिल हो गए। गांव में सभी को सूचित किया गया कि इस बार होली नही मनेगी। सभी ग्रामीण सहमत हो गए। इसके चलते इस बार गांव में ना तो रंग बरसने वाली टोलियां दिखाई दी और ना ही राम-राम करने लोग एक दूसरे के घरों में गए। पूरे गांव में माहौल एकदम सामान्य दिनों की तरह था।
निर्णय की जानकारी नहीं होने के कारण कुछ युवक बीओपी में गए भी तथा जवानों की गालो पर रंग लगाया। जो कुछ ही मिनिट बाद वापिस आ गए। हालांकि छोटे छोटे बच्चे जरूर एक दूसरे पर रंग छिड़कते दिखे। लेकिन गांव की महिलाएं, बुजुर्ग, युवाओं ने होली का त्यौहार नहीं मनाया।
पूर्व सरपंच सीताराम ने बताया कि पुलवामा में हमारे कितने ही परिवारो की जिंदगियां उजड़ गई, उन जवानों के घरों में मातम छाया है, फिर हमारे घरों में होली का क्या ओचित्य है। ग्रामीण नंदलाल दूगरिया ने कहा कि पुलवामा में शहीद जवान हमारी ही धरती की हिफाजत में लगे हुए थे। वो हमारे ही परिवारों में से थे। जब हमारे जवानों के घरों पर दुख पसरा है तो होली हमारे लिए अर्थहीन है।
एक ग्रामीण ने बताया कि बॉर्डर पर हमारे जवान बन्दूक की नोक पर बैठे है, सीमा पार नापाक इरादों के चलते कभी भी खून की होली खेली जा सकती है, हम बॉर्डर पर जवानों के बीच रहते है तो हमें इन जवानों का दर्द पता है। पुलवामा में शहीद हुए जवान भी हमारे ही थे, इसलिए हमने होली नहीं मनाई।