पार्क में चारदीवारी के अंदर फुटपाथ के अलावा कुछ भी नहीं है। घूमने और बैठने के लिए दूब घास नहीं है। रात के समय रोशनी करने के लिए लाइट नहीं है। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले नहीं है। पार्क में एक-दो लोहे के टूटी-फूटी हालत में बैंच पड़े हैं। इन पर भी जंग लगने के कारण ये बैठने के योग्य नहीं बचे हैं। इस स्थिति में पहुंच चुके पार्क की सार संभाल के लिए कोई माली रखा होगा ये तो सोचना ही बेमानी है।
पशुओं का बना सहारा
पार्क के पास खाली पड़े भूखंडों में झुग्गियां बनी हुई है। झुग्गियों में रहने वालों की बकरियां इस पार्क में लगे दो-चार पेड़ों के नीचे दिन में बैठी रहती है। वहीं कभी पशुपालक अपने पशुओं को भी पेड़ों के नीचे बांधकर चले जाते हैं। बदहाल स्थिति में पहुंच चुके पार्क में एक भी पौधा नहीं है।
कचरा डालते हैं लोग
पार्क की बदहाली की रही सही कसर वे लोग पूरी कर देते हैं जो इसमें कचरा डालकर जाते हैं। पार्क के अंदर कई जगहों पर कचरे के ढेर लग चुके हैं। ये पार्क एक तरह से कचरा डंपिंग स्टेशन जैसा प्रतीत होता है। हवा चलने पर पार्क में धूल और पॉलीथिन उड़ते रहते हैं इससे आसपास के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
असामाजिक तत्वों का बना अड्डा
आसपास के लोगों की माने तो यह पार्क अब शाम के समय असामाजिक तत्वों का अड्डा बना हुआ है। नशेड़ी किस्म के लोग यहां बैठकर नशे का सेवन करते हैं। वहीं सुबह लोग पालतू श्वानों को पार्क में छोड़ देते हैं, जिससे वे पार्क में गंदगी करते हैं। पार्क में गंदगी का आलम ये है कि इसके पास से गुजरते समय मुंह पर कपड़ा लगाना पड़ता है।