केन्द्र सरकार खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य की घोषणा कर किसानों से किए वादे को पूरा करने का दावा कर रही है। सरकार ने समर्थन मूल्य में वृद्धि करते समय मोटे अनाज जैसे बाजरा, मक्का और ज्वार आदि को विशेष महत्व दिया है। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो यह निर्णय सही है क्योंकि चिकित्सक भी अब खाद्यान्न के रूप में मोटे अनाज के उपयोग की सलाह देने लगे हैं। समर्थन मूल्य में वृद्धि केन्द्र सरकार की कृषि नीति का भी खुलासा करती है जो जहर मुक्त खेती को बढ़ावा देने वाली कदापि नहीं।
फार्मूला सही नहीं, फिर भी सही
&खरीफ फसलों के समर्थन मूल्य की घोषणा करते समय सरकार ने सही फार्मूला नहीं अपनाया। फिर भी सरकार ने जो मूल्य घोषित किए हैं, वह अच्छे हैं। बाजरी, मक्का और ज्वार जैसे मोटे धान के समर्थन मूल्य में जितनी वृद्धि की है, उससे यह फसलें किसान के लिए खेती का विकल्प बनेगी। मोटा धान स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। सरकार ऐसे धान के महत्व को स्थापित करना चाहती है जो अच्छी बात है। समर्थन मूल्य में वृद्धि यह संकेत भी दे रही है कि सरकार कम लागत वाली जैविक खेती की बजाय रासायनिक खेती को बढ़ावा देने की पक्षधर है। इससे तो किसान की उत्पादन लागत कम नहीं होगी और वह कर्ज के बोझ तले दबा रहेगा।
मनीराम पूनियां, प्रगतिशील किसान, सांवतसर
किसानों के लिए केन्द्र सरकार ने पहली बार अच्छा प्रयास किया है। लेकिन आशंका खरीद को लेकर है। किसानों की उपज अगर समर्थन मूल्य पर नहीं बिकती है तो फिर मूल्य वृद्धि महज घोषणा ही साबित होगी। राजस्थान के लिए किसानों के लिए बाजरे का समर्थन मूल्य गेहूं से भी ज्यादा तय करना बड़ी बात है। बाजरा कम पानी से तैयार होने वाली फसल है और इसका उत्पादन प्रति बीघा गेहूं से ज्यादा है। अब इस क्षेत्र में भी बाजरे की खेती को बढ़ावा मिलेगा। मूंग का समर्थन मूल्य भी किसान के हित में है। सरकार किसान की उपज का समर्थन मूल्य भी दिलाने की व्यवस्था करेगी तभी वादा पूरा होगा।
सत्यनारायण गोदारा, जोधपुर प्रांत उपाध्यक्ष, भारतीय किसान संघ