रेलवे के लोको पायलटों ( Railway loco pilots ) ने अपनी मांगों को लेकर सोमवार से तीन दिवसीय भूख हड़ताल शुरू कर दी है। इसके तहत लोको पायलट भूखे रहकर ट्रेनें चलाएंगे। सूत्रों के अनुसार इस हड़ताल का रेल सेवाओं पर असर नहीं पड़ा है। लोको पायलट रेल सेवाओं को प्रभावित किए बिना आंदोलन कर मांगों को मनवाने का प्रयास कर रहे हैं।
श्रीगंगानगर अंचल में रेलवे के रिटायरिंग रूम में ठहरे हुए लोको पायलटों के भूख हड़ताल पर चले जाने की खबर मिलते ही रेलवे पुलिस तथा रेलवे के अधिकारी उन्हें समझाने पहुंचे। लेकिन लोको पायलटों ने साफ़ जवाब दे दिया कि वह अपनी इस हड़ताल से रेल सेवाओं में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेंगे।
रेलवे सेवा आवश्यक सेवाओं में शामिल होने के कारण वे रेल सेवाओं को ठप्प नहीं कर सकते लेकिन अपने इस तरीके से मांगे मनवाने के लिए सरकार पर दबाव तो डाल ही सकते हैं। सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए वे भूखे रहकर ट्रेनें चलाएंगे।
इन वजहों से नाराज़ हैं लोको पायलट्स
बताया जा रहा है कि लोको पायलट को अभी भी 1980 का माइलेज रेट मिल रहा है। रेलवे द्वारा उनके यात्रा एवं भोजन भत्ते (टीए-डीए) में वृद्धि कर दी जाती है लेकिन माइलेज रेट में वृद्धि नहीं की जा रही। रेलवे कर्मचारी रेलवे का निजीकरण तथा निगमीकरण के किए जा प्रयासों का भी विरोध कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि लोको पायलट को अभी भी 1980 का माइलेज रेट मिल रहा है। रेलवे द्वारा उनके यात्रा एवं भोजन भत्ते (टीए-डीए) में वृद्धि कर दी जाती है लेकिन माइलेज रेट में वृद्धि नहीं की जा रही। रेलवे कर्मचारी रेलवे का निजीकरण तथा निगमीकरण के किए जा प्रयासों का भी विरोध कर रहे हैं।
… इधर, लोको पायलट्स की स्थिति खराब
दरअसल, प्रदेश में जब भीषण गर्मी का सिलसिला परवान पर रहता है तब लोग 40-45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने से बेहाल होते हैं। वहीं रेलवे के लोको पायलट 5-8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा यानि 50 से 53 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में ट्रेन चलाते हैं। इंजन की हालत गर्मियों में किसी बॉयलर से कम नहीं होती। बाहर के तापमान के साथ इंजन की गर्मी से लोको पायलट के केबिन का तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस होता है।
दरअसल, प्रदेश में जब भीषण गर्मी का सिलसिला परवान पर रहता है तब लोग 40-45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने से बेहाल होते हैं। वहीं रेलवे के लोको पायलट 5-8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा यानि 50 से 53 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में ट्रेन चलाते हैं। इंजन की हालत गर्मियों में किसी बॉयलर से कम नहीं होती। बाहर के तापमान के साथ इंजन की गर्मी से लोको पायलट के केबिन का तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस होता है।
इन हालातों में भी खुद को बीमार कर लोको पायलट यात्रियों को सुरक्षित उनकी मंजिल तक पहुंचा रहे है। रेलवे बोर्ड ने लोको पायलटों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2006 में लोको में एयर कंडीशनर (एसी) लगाने के लिए योजना बनाई थी, जो 12 साल बाद भी मूर्तरूप नहीं ले पाई।
जोधपुर मंडल में कुल रेल इंजन की संख्या करीब 170 है। तापमान ही नहीं, इंजन में लगी 6 मोटरों के चलने की भारी आवाज और गडग़ड़ाहट भी इनकी परीक्षा लेती है। ये हालात इसलिए है क्योंकि रेलवे की 75 प्रतिशत से अधिक ट्रेनों के लोको पायलट के केबिन में एसी नहीं है। जिन 10 प्रतिशत ट्रेनों के इंजन में एसी लगे है, उनमें केवल 5 फ़ीसदी ही काम कर रहे है। 10 प्रतिशत में केब फेन लगे है लेकिन ताज्जुब की बात है कि 5 प्रतिशत में कुछ भी नहीं लगा हैं जो कि किसी बायलर से कम नहीं है।
बहरापन, बीपी-शुगर हो रही चिकित्सकों के अनुसार लोको पायलट को हाई बीपी, शुगर और बहरेपन की बीमारी आम है। युवा लोको पायलट भी तेजी से इसकी चपेट में आ रहे है। वर्ष 2018-१9 में अकेले जोधपुर मण्डल में लगभग 10 से ज्यादा लोको पायलट मेडिकल डिकेटेगराइज हुए है। इंजन में टायलेट-बाथरूम की सुविधा भी नहीं है। एेसे में महिला लोको पायलट को बहुत ज्यादा दिक्कत होती है।