कोरोना की तीसरी लहर का हवाला देकर यहां इस बार भी रावण, मेघनाथ और कुंभकणज़् के पुतलों का दहन नहीं होगा। हालांकि नगर परिषद प्रशासन ने इन पुतलों की तैयारी करवाई थी। दो सालों में नगर परिषद के जिम्मेदारों ने भी इस रामलीला मैदान की अनदेखी ऐसी कर दी कि जिस मंच पर रामलीला का मंचन होता है, अब यह नशेडिय़ों की शरणस्थली बन चुका है।
सांझ ढलते ही नशेड़ी इस मैदान के मंच के खाली कमरों में डेरा डाल देते है। वहां तीन कमरों में इतनी गंदगी हो चुकी है कि पूरी छत और दीवारें आग लगने के कारण काली परतों का रूप ले लिया है।
इन कक्ष के गेटों पर नगर परिषद प्रशासन ने ताले नहीं लगवाए। वहीं मैदान में सफाई नहीं होने के कारण आंक के पौध्ेा इतने हो गए है कि ऐसा लगता नहीं है कि यह मैदान भी कभी साफ रहता था।
वहीं भारत चौक साइड की दीवार पर लगी लोहे की एंगल भी उखड़ चुकी है। इन लोहे की एंगल को नशेड़ी चुरा ले जा चुके है। कई लोगों ने अपने खच्चर जैसे जानवर इस मैदान में छोड़ रखे है।
इस मैदान के तीन गेट है, जिसमें दो गेट अक्सर खुले रहते है। ऐसे में कोई वाहन या व्यक्ति इस मैदान में प्रवेश कर सकता है। दशज़्क दीघाज़् विधायक और सांसद कोटे से बनवाई गई थी, वहां भी कभी झाडू तक नहीं लगती।
नगर विकास न्यास ने वषज़् 2016 में इस मैदान को नगर परिषद को सुपुदज़् किया था। न्यास के पास यह जब मैदान था तब प्रत्येक कॉमशिज़्यल इस्तेमाल के एवज में सात हजार रुपए का किराया वसूला जाता था।
लेकिन नगर परिषद प्रशासन के हाथो में आने के बाद यह मैदान कमाई पूत निकला। नगर परिषद ने एक मेले के आयोजन की अनुमति देने के लिए करीब सवा लाख रुपए रोजाना किराया वसूल कर नया रेकाडज़् बनाया था। व्यावसायिक गतिविधियों के लिए प्रतिदिन का किराया बीस हजार रुपए है, यदि एक ही समय के लिए किराय मांगने के लिए एक से अधिक कंपनी या फमज़् या इंवेट कंपनी दावेदारी करती है तो खुली बोली की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
इस खुली बोली में प्रतिदिन का किराया बीस हजार से सवा लाख रुपए प्रतिदिन तक पहुंच जाता है। वहीं धामिज़्क या सामाजिक कायज़्क्रमों के लिए महज दो हजार रुपए किराया वसूला जाता है। पिछले सात सालों में करीब तीन करोड़ रुपए का राजस्व नगर परिषद के खजाने में मैदान के किराये के एवज में आ चुके है।
लेकिन यह सिफज़् कमाई का जरिया ही बना रहा। इस मैदान के रखरखाव पर कोई बड़ा बजट खचज़् नहीं किया गया है। दो साल बाद भी दीवार नहीं बनाई दो साल पहले शहर में अत्यधिक बरसात होने पर नगर परिषद प्रशासन ने बरसाती पानी को इस मैदान में डालने के लिए आचायज़् तुलसी मागज़् के कॉनज़्र पर दीवार को तोड़ दी थी। यह दीवार अब तक वापस नहीं बनाई है।
इस कारण मैदान में आवारा पशुओं का जमावड़ा लगा रहता है। गोपीराम बगीची के सामने वाले इस मैदान के गेट के बाहर लगा साइन बोडज़् भी उखड़ गया है। इसे दुरुस्त कराने की बजाय वहां छोड़ दिया गया है। पिछले दिनों हुई रीट परीक्षा के दौरान नगर परिषद ने मोबाइल शौचालय के दोनों वाहनों को वहांं छोड़ा था, ये वाहन अब भी वहां खड़े हुए है।
इसकी सार संभाल किसी के पास नहीं है। इस मैदान पर करीब 70 साल तक दशहरे का आयोजन महावीर दल मंदिर संस्था ने किया था लेकिन नगर परिषद बोडज़् ने वषज़् 2019 तक महावीर दल मंदिर संस्था की बजाय खुद मनाने का निणज़्य लिया था।
इसके अलावा राजनीतिक दृष्टि से यह मैदान कई हस्तियों की जनसभा के लिए साक्षी रहा है। यहां पूवज़् प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, चन्द्रशेखर, नरेन्द्र मोदी की जनसभा आयोजित हो चुकी है। इधर, नगरपरिषद के पैरोकार प्रेम चुघ ने बताया कि जब जरूरत पड़ती है तो इस मैदान में समय समय पर जीणोज़्द्धार कराए जाते है। जिम्मेदारी नगर परिषद के निमाज़्ण शाखा की है।
नशेडिय़ों को रोकने की व्यवस्था करेंगे। चारदीवारी का निमाज़्ण कराया जाएगा। कोरोना काल की वजह से दो सालों से दशहरे का आयोजन ठप पड़ा है। इस बार भी अनुमति नहीं मिली।