scriptहमारे संघर्ष और जिजविषा कहानियों का आधार | The basis of our struggle and passion stories | Patrika News
श्री गंगानगर

हमारे संघर्ष और जिजविषा कहानियों का आधार

-दो दिवसीय जिला साहित्यकार सम्मेलन संपन्न

श्री गंगानगरNov 21, 2022 / 08:50 am

Krishan chauhan

हमारे संघर्ष और जिजविषा कहानियों का आधार

हमारे संघर्ष और जिजविषा कहानियों का आधार

हमारे संघर्ष और जिजविषा कहानियों का आधार

-दो दिवसीय जिला साहित्यकार सम्मेलन संपन्न

श्रीगंगानगर राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर एवं सृजन सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय जिला साहित्यकार सम्मेलन रविवार को चितलांगिया भवन में सम्पन्न हुआ।
दूसरे दिन सुबह के सत्र में ‘श्रीगंगानगर का कथा-साहित्य: एक दृष्टि’ विषय पर युवा आलोचक डॉ. आशाराम भार्गव ने पत्रवाचन करते हुए कहा कि यहां की कहानियां अपने आसपास के परिवेश को जीवित करती हैं। इन कहानियों में जहां स्थानीय समस्याओं को उठाया गया है, यहां के किसान की पीड़ा, पानी की कमी, राजनीति आदि को अपनी कहानियों का आधार बनाया है। इनमें से कुछ कहानियां तो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कहानियों समकक्ष हैं, यह अलग बात है कि उनकी ज्यादा चर्चा नहीं हो पाई। पत्र पर डॉ. मंगत बादल, निशांत, डॉ. भरत ओला एवं कृष्णकुमार ‘आशु’ ने व्यापक चर्चा की और अपने सुझाव दिए।
कहानी की परंपरा पुरानी
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वयोवृद्ध कहानीकार नीलप्रभा भारद्वाज ने कहा कि कहानियां जीवन के आसपास ही होती हैं। हमारे संघर्ष, हमारी जिजीविषा ही कहानियों का आधार बनती है।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ आलोचक डॉ. नवज्योत भनोत ने कहा कि इस क्षेत्र के साहित्य को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस प्रकार के विमर्श अनिवार्य हैं। इससे युवा साहित्यकारों को प्रोत्साहन मिलता है। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ आलोचक सरदार भूपेंद्रसिंह ने कहा कि कहानी को पश्चिम की परम्परा से आया बताया जाता है, लेकिन हमारे यहां बात परम्परा बहुत पुरानी थी, क्या आज की कहानी उसी बात परम्परा का परिष्कृत रूप नहीं है? इस सत्र का संचालन कहानीकार-कवि सुरेंद्र सुंदरम ने किया।
प्रसार में तकनीक का सहारा
समापन सत्र में मुख्य अतिथि टांटिया विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ. राजेंद्रसिंह गोदारा ने कहा कि समय के साथ बदलाव आते हैं। आज जो तकनीक आ रही है, उसे देखते हुए हमें साहित्य के प्रसार के लिए इनका सहारा लेना होगा। उन्होंने कहा कि जब तक रचना में घटनाओं का मार्मिक चित्रण नहीं होगा, रचना प्रभावी नहीं हो पाएगी। प्रेमचंद की कहानियों का आज भी गहरा प्रभाव है तो उनकी कहानियों में मार्मिक चित्रण ही प्रमुख कारण है।
कलम का बेहतर उपयोग हो
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सैन्य अधिकारी एवं वरिष्ठ कवि कर्नल पंकजसिंह ने युवा साहित्यकारों को आह्वान करते हुए कहा कि आपकी कलम में वह ताकत है, जो लोगों का जीवन बदल सकती है। इसलिए इसका बेहतर उपयोग करें। उपस्थित संभागियों में से मनीराम जाखड़ ने सम्मेलन के दौरान हुए विमर्श को सार्थक और क्षेत्र के लिए बहुत उपयोगी बताया। इसके अलावा वहां की गई व्यवस्थाओं की सराहना भी की। अंत में सृजन के अध्यक्ष डॉ. अरुण शहैरिया ‘ताइर’ ने आभार व्यक्त किया। इस सत्र का संचालन युवा शायर सत्यपाल जोइया ने किया। शिविर में श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले से लगभग एक सौ संभागियों ने हिस्सा लिया।

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