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1947 इंडिया पार्टिशन: अगर सरदार पटेल न होते, तो जिंदा भारत न आ पाते- देखें वीडियो

1947 के भारत-पाक बंटवारे का दर्द झेल रहे लोगों की वो खौफनाक मंजर यादकर भर आईं आंखें

मुजफ्फरनगरAug 14, 2017 / 03:58 pm

sharad asthana

1947 partition
मुजफ्फरनगर। विभाजन या बंटवारा किसी देश, भूमि या सीमा का नहीं होता है। विभाजन तो लोगों की भावनाओं का हो जाता है। विभाजन का दर्द वे ही अच्छी तरह जानते है, जिन्होंने इसको सहा है। हम बात कर रहे हैं 1947 में हुए बंटवारे की। इसमें लोगों को जो दर्द मिला है, वो आज भी सालता है। हम आपको बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आए कुछ ऐसे लोगों से मिलवाते हैं, जो आज भी उन दिनों को भुला नहीं पाए हैं।
 बहुत खराब थी स्थिति

बंटवारे का दर्द झेल रहे प्रकाशलाल ने बताया, उस समय उनकी उम्र 17 साल थी, जब वो पाकिस्‍तान से यहां आए थे। उस समय बहुत खराब स्थिति थी। सारी गाड़‍ियां रोक दी गई थी। पटेल की मेहरबानी से वो यहां पहुंचे थे। रोते हुए उन्‍होंने कहा, बंटवारे के बाद रातो-रात कत्‍लेआम शुरू हो गया था। मेरा बहुत बड़ा परिवार था। मेरे परिवार के कई लोग काफिले के साथ मारे गए थे। हम पाकिस्‍तान से निकलकर अमृतसर आए थे। बंटवारे में हमारा सब कुछ छिन गया था। वो मंजर यादकर आज भी रोना आता है। वहीं, किशनलाल ने बताया, बंटवारे से पहले उनका परिवार पाकिस्‍तान के गुजरात जिले में था। सेना ने ट्रेनों नें बैठाकर हमें यहां भेजा। जालंधर के बाद हम हरियाणा और फिर खतौली आ गए। उस समय मारकाट बहुत ज्‍यादा हुई। 
दंगाई बनाने लगा निशाना

1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, उस समय जमुना देवी की उम्र पंद्रह साल थी। वो पाकिस्‍तान में जिला डेरा गाजी खां में रहती थीं। बंटवारे का वह मंजर आज भी उनके जेहन में ताजा है। जिक्र करते ही आंखाें में आंसू छलक पड़ते हैं। वह कहती हैं, राजनीति के बिसात पर बैठे सियासतदानाें की वजह से हजारों जानें चली गईं। दोनों देशों के बीच ऐसे नफरत के बीज बो दिए गए, जिसकी खाई आज तक नहीं भर पाई। वो बताती हैं, बंटवारे के बाद पाकिस्तान में हालात बेहद खराब हो गए थे। पाकिस्तान सरकार ने घोषणा की कि जिस हिंदू परिवार को हिंदुस्तान जाना है, वह जा सकता है। यह घोषणा होते ही दंगाई हमारे परिवाराें को निशाना बनाने लगे। एक ही दिन तीन गाड़ियां हिंदुस्तान के लिए रवाना हुईं। दंगाइयों ने ट्रेनें लूट लीं। बहू-बेटियों को उठा ले गए। हमारे परिवार को भी दंगाइयों ने निशाना बनाना शुरू कर दिया। किसी तरह छुपते-छुपाते अपने घर की इज्जत को उनके पिता ने बचाई। कई रात इधर-उधर भटकते रहे। फिर हिंदुस्तान सरकार ने हिंदुओं को लाने की मुहिम शुरू की। जमुना देवी का पूरा परिवार किसी तरह ट्रक में बैठकर 48 घंटे की लंबी यात्रा के बाद मुदफ्फरगढ़ पहुंचा। काफिले के साथ भारत की सेना चल रही थी। इसकी वजह से दंगाइयों ने ट्रक को निशाना नहीं बनाया। हालात इस कदर खराब हो गए थे कि ट्रेन की पटरियों को उखाड़ दिया जा रहा था। उसके बाद 6 महीने अटारी और 7 महीने रेवाड़ी के सरकारी कैंप में रहने के बाद तत्कालीन सरकार के पलवल में दिए गए 25 गज के मकान में रहने के बाद 1950 में जमुना देवी का परिवार मुजफ्फरनगर आ गया। तब से अब तक जमुना देवी मुजफ्फरनगर में रह रही हैं।
 पांच दिन तक पानी भी नहीं मिला

जोर से बोलने पर सुनने वाली लक्ष्‍मी देवी ने बताया, मेरे पिता जी वैद्य थे। बंटवारे के समय हम खाली हाथ आए थे। यहां से मदद मिली। जब हम निकले तब 36 घंटे दंगे होता रहा। पूरा का पूरा माेर्चे में कत्‍ले आम किया गया। मरने वालों की कोई गिनती नहीं थी। मालगाड़ी से हमें लाया गया। लालामूसा स्‍टेशन पर गाड़ी रोक दी गई। हमें मारने की तैयारी की थी। पांच दिन तक भूखा रखा गया। पानी भी नहीं मिला। फिर पटेल की वजह से हम अमृतसर पहुंचे। उस समय उनकी उम्र 15 साल थी। जो गांव में थे सब मारे गए। दंगाई आ गए तो बताया क‍ि भारतीय सेना आ गई। जब सब वहां पहुंचे तो दंगाइयों ने सबको मार गया। मिहाली जिले में ये सब हुआ था। जब बंटवारा हुआ था, तब मेरी शादी को तीन माह हुए थे। बंटवारे की सोच कर जल्‍दी शादी कर दी गई थी।

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