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121 गांवों में दो लाख की आबादी, अधिक जल दोहन से भूमिगत पानी की बर्बादी….पढ़ें यह न्यूज

पानी के अभाव में बिना फसलों के बंजर हो रहे खेत, पलायन कर रहे लोग। चार दशकों में यहां के विधायक, सांसद चम्बल या अन्य जगह से मीठा पानी नहीं ला सके, उनका यह चुनावी वादा बन कर रह गया।

अलवरMay 23, 2024 / 10:11 pm

Ramkaran Katariya

कठूमर. स्थानीय विधानसभा क्षेत्र में 121 गांवों की दो लाख से अधिक की आबादी दशकों से जल संकट झेल रही हैं। इन क्षेत्रों में पानी के अधिक दोहन व बर्बादी से भूजल गहरा चला गया, जिससे पेजयल ही नहीं है, जहां पानी है वो खारा होने से पीने के उपयोग में नहीं आता। पानी की कमी से खेती योग्य कई एकड़ जमीन भी अब बंजर नजर आने लगी है। सैंकड़ों परिवार क्षेत्र से पलायन कर गए हैं और कई करने को तैयार है। चार दशकों में यहां के विधायक, सांसद चम्बल या अन्य जगह से मीठा पानी नहीं ला सके। उनका यह चुनावी वादा बन कर रह गया।
कठूमर, खेरली जैसे बड़े कस्बों में भी नलों में खारा पानी सप्लाई हो रहा है। दर्जनों गांवों में टैंकरों से पानी की सप्लाई हो रही है। कई गांवों में निजी आरओ प्लांट से पानी की पूर्ति हो रही है। हालात यह है कि बीजला जैसे गांवों में लोगों ने पानी का स्टोर करने के लिए पश्चिम राजस्थान की तर्ज पर घरों के बाहर टांके बनवा रखे हैं। कई गांवों में दो -तीन किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। खेड़ा लगनपुर निवासी बाबूलाल मैनेजर के अनुसार क्षेत्र के कई गांवों में वर्षों से निजी टैंकरों, ट्यूबवेलों से पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है।
इन गांवों में जल संकट

क्षेत्र के टीकरी, रेला, ऊकसी, बहरामपुर, बड़ौदाकान, चैनपुरा, चौहरी का नगला, मोती का नंगला, पीपलखेड़ा, राजपुर, सिटाहेड़ा, अढ़ौली, पीपल खेड़ा, तुसारी, अजीतपुरा, बड़का, बड़ीका, बाड़ला बादसू, बल्लूपुरा, रामगढ़, बरांडा, बसेठ, बायड़ा ,बीजला, भदीरा, भरीतल, भट्ट बास, भाऊपाड़ा, भोजीपुरा, बिसरी, बूलाहेड़ी, चकतपसी, चांदपुर, दयालपुरा, डयौठाना, कांकरोली, ढ़ंडा, दुधेरी, गहलावता, गंजपुर, घीवड़ी, हनीपुर, हनुमान बास, हनुमंता, इमरती का बास, इन्द्रा काॅलोनी, ईसरोती, ईटौला, जाड़ला, जोधपुरा, कंचनपुरा, कानेटी, कांकरोली, कांटवाड़ी, कारौली, कैमला, खातीपुरा, खेड़ा तरफ बहतु, खेरली तरफ नूनिया, लाठकी, लिडपुरी, मैथना, मक्खन का नंगला, माणकपुर, मंगोलाकी, मानपुर, मान्या का बास, मथुराहेड़ा, मोहनबास, मूंडिया, नंगला धनसिंह, नंगला मतुआ नंगला, बास गुमान, नंगला जादू, नंगला सीताराम, नंगला केसरिया, नंगला माधोपुर, नंगला गुमान, नंगली तरफ़ टोडा, निठारी, नूनिया, नूरपुर, पहाड़ी, पांवटा, पटाकपुर, पिसती, पीतमपुरा, रामनगर रानोली, रामपुरा, रेटा, लेटी, रीझवास, रूंध मैथना, सहाड़ी, सहजपुरा साजनपाड़ा, संतोकपुर, सलैमपुर, सिददा का नंगला, शेखपुरा, सुंडयाना, टैंटपुर, तिगरिया सहित 121 गांवों में या तो पानी नहीं है या पानी है तो पीने योग्य नहीं है।
जल संरक्षण का अभाव

क्षेत्र में मीठे पानी की कमी का सबसे बड़ा कारण यहां जल संरक्षण का नहीं होना है। क्षेत्र में एक भी बांध या तालाब नहीं है, जिससे धरती का वाटर रिचार्ज करने के लिए वर्षा व अन्य जल का संरक्षण हो सके। इसके अलावा पहाड़ों के लगातार दोहन व जंगलों को नुकसान पहुंचाने से कुछ वर्षों से बारिश भी ज्यादा नहीं होती है।
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लोगों ने यूं बताई जल संकट की पीड़ा

दो दिन के अंतराल में जलापूर्ति

पानी की सप्लाई 48 घंटे में एक बार की जा रही है। बिजली की आपूर्ति कम रहने या फिर मोटर खराब होने से यह समय चार-पांच दिन भी लग जाता है। नलों का पानी पीने योग्य नहीं है। लोग सुबह मीठे पानी का जुगाड करते हैं।
– सिप्पी सोनी, पूर्व पंचायत समिति सदस्य, कठूमर।

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योजना में लग सकते है महीनों

क्षेत्र में जेजेएम योजना में अधितर काम देरी से चल रहा है। बाहरी हिस्सों में नलों का पानी नहीं है। योजना में पानी मिलने में महीनों लग सकते हैं।
– लोकेश पंसारी, निवासी, कठूमर।

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शरीर हो रहा रोगी

खारे पानी से शारीरिक समस्याएं बढ़ती जा रही है। कम उम्र में घुटनों में दर्द, बालों का सफेद होना सहित अन्य समस्याएं पैदा हो रही है।
– गुल्लू दुरेजा, सामाजिक कार्यकर्ता निवासी, कठूमर।

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खेत बन रहे बंजर

पानी की व्यवस्था को लेकर पूरे क्षेत्र में परेशानी है। बगैर पानी खेती में भी दिक्कत आने लगी है। पानी के अभाव में बहुत से किसान सालभर में एक ही फसल ले पा रहे हैं।
सोमेश्वर चौधरी सामाजिक कार्यकर्ता, कठूमर।

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डीपीआर बनने का काम शुरू

प्रदेश सरकार ने सत्ता में आते ही ईआरसीपी का ओएमयू करा दिया है। इसकी डीपीआर बनने का भी काम शुरू हो गया। मेरी प्राथमिकता हमेशा ही क्षेत्र को मीठा पानी दिलाने की रही है। मुख्यमंत्री व जल संसाधन मंत्री को पत्र लिखा है।
– रमेश खींची, विधायक, कठूमर।

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गांवों में भूमिगत जल नहीं

समस्याग्रस्त गांवों में आरओ प्लांट के माध्यम से पीने का पानी दिया जा रहा है। कई गांवों में सरकारी ट्यूबवेल भी लगे हुए हैं। जेजेएम योजना के मानकों के अनुसार इन गांवों में भूमिगत जल नहीं है। सतही जल से इन गांवों में पानी आ सकता है।
राहुल अवस्थी एईएन पीएच ईडी, कठूमर।

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