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गारंटी के साथ चुनौतियों से दो-दो हाथ, सिद्धरामय्या सरकार ने पूरे किए एक साल

विपक्षी दावों को खारिज करते हुए कांग्रेस का कहना है कि, गारंटी कार्यक्रम पूरी तरह से सफल रहे हैं और लोकसभा चुनावों में उसका असर भी देखने को मिलेगा। कांग्रेस का कहना है कि, इन एक वर्षों के दौरान उसने सभी समुदायों के लिए निष्पक्ष रूप से काम किया और समान विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया।

बैंगलोरMay 20, 2024 / 07:22 pm

Rajeev Mishra

बेंगलूरु. मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सत्ता के एक साल पूरे कर लिए हैं। पिछले साल 13 मई को शानदार जीत दर्ज करने के बाद सरकार गठन को लेकर लगभग एक सप्ताह तक जद्दोजहद चली और अंतत: सिद्धरामय्या के नेतृत्व में 20 मई को कांग्रेस सरकार अस्तित्व में आई।
इन एक वर्षों के दौरान सरकार ने वादे के मुताबिक सभी पांच गारंटी कार्यक्रम लागू किए। विपक्षी दावों को खारिज करते हुए कांग्रेस का कहना है कि, गारंटी कार्यक्रम पूरी तरह से सफल रहे हैं और लोकसभा चुनावों में उसका असर भी देखने को मिलेगा। कांग्रेस का कहना है कि, इन एक वर्षों के दौरान उसने सभी समुदायों के लिए निष्पक्ष रूप से काम किया और समान विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया। राज्य के 4.60 करोड़ जनता को कहीं न कहीं गारंटी कार्यक्रमों का लाभ मिला है। इस दौरान सरकार ने बुनियादी विकास के साथ गरीब, महिला, किसान और मजदूरों के उत्थान के लिए काम किया। गारंटी योजनाएं देश ही नहीं, बल्कि, दुनिया भर में समग्र विकास का मॉडल बन रही हैं।

कानून-व्यवस्था चरमराई, विकास ठप: भाजपा

लेकिन, भाजपा ने लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस शासन को पूरी तरह विफल बताते हुए विकास कार्र्यों के ठप हो जाने का आरोप लगाया। भाजपा अब कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े कर रही है और उसका दावा है कि, कांग्रेस के एक साल के शासनकाल में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। राज्य में हत्या और लूट की घटनाएं बढ़ीं हैं। गारंटी कार्यक्रमों पर विपक्ष ने राज्य सरकार का खजाना खाली होने का भी आरोप लगाया है।

अंदरुनी मतभेदों के बावजूद मजबूती से डटे

मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के लिए पिछले एक साल का कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहा है। दूसरी बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने के तुरंत बाद मंत्रिमंडल गठन को लेकर लंबी खींचतान चली। इस दौरान पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेद भी उजागर हुए। खासकर उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के साथ तालमेल की कमी कई मौकों पर उजागर हुई। सिद्धरामय्या और डीके शिवकुमार के बीच ढाई-ढाई साल के फार्मूले पर समझौते की बात भी बार-बार सामने आई। इससे कई बार पार्टी खेमों में बंटी नजर आई। डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश और उद्योग मंत्री एमबी पाटिल के बीच नोंक-झोंक से पार्टी का अंदरुनी कलह भी सामने आया। इसके अलावा चार उप मुख्यमंत्री बनाने और मंत्रियों के बयानबाजी से भी कई बार सरकार को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। पिछले एक साल के दौरान पार्टी के भीतर अंदरुनी खींचतान चलती रही लेकिन, इन सारी चुनौतियों के बावजूद सिद्धरामय्या मजबूती के साथ डटे रहे।

भीषण सूखे ने बढ़ाई मुश्किलें

कांग्रेस सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती भीषण सूखे के कारण पेश आई। इस दौरान कांग्रेस सरकार ने केंद्र से मिलने वाली राहत राशि को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया और चुनावी मुद्दा भी बना। कांग्रेस महासचिव और प्रदेश मामलों के प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि, सरकार के गारंटी कार्यक्रमों ने सूखे से जूझ रहे लोगों को राहत पहुंचाने और मरहम के रूप में काम करने में मदद की। राज्य के 223 तालुक सूखे से प्रभावित थे और यहां तक कि जब केंद्र ने आपदा राहत के तहत कानूनी रूप से बकाया धन में देरी की, तब भी गारंटी कार्यक्रम एक सामाजिक सुरक्षा ढाल बने।
लोकसभा चुनावों पर भविष्य टिका
उन्होंने कहा कि, इन एक वर्षों में सरकार ने क्रांतिकारी कदम उठाए और यह सुनिश्चित किया कि, बड़ी उपलब्धियां हासिल करने में सक्षम हैं। यह एक संकेत है जो आने वाले 4 वर्षों के दौरान सरकार हर चुनौती का डटकर सामना करेगी और राज्य को नई ऊंचाई पर ले जाएगी। लोगों की उम्मीदों को पूरा करने में एक नए दौर की शुरुआत होगी। हालांकि, कांग्रेस के भीतर अब भी मुख्यमंत्री बदलने की आवाज नहीं थमी है। लोकसभा चुनावों के परिणाम राज्य और कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के लिए अहम साबित होंगे।

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