scriptRamadan 2024 : MP के इस शहर में तोप चलने के बाद ही कर सकते हैं सहरी इफ्तार, जानें क्या है मामला | MP Raisen kila Sehri Iftar interesting facts and Tradition | Patrika News
रायसेन

Ramadan 2024 : MP के इस शहर में तोप चलने के बाद ही कर सकते हैं सहरी इफ्तार, जानें क्या है मामला

Ramadan 2024 : एमपी के एक शहर में ऐसी ही नवाबों के जमाने की अनोखी परंपरा है …. जहां तोप चलने के बाद की जाती सहरी और इफ्तार

रायसेनMar 19, 2024 / 04:21 pm

Nisha Rani

fire_work.jpg

Ramadan 2024 : इबादत का महीना रमजान इन दिनों चल रहा है। इसको लेकर कई जगह रोचक परंपराएं भी हैं। एमपी के एक शहर में ऐसी ही नवाबों के जमाने की अनोखी परंपरा है, जिसके लिए प्रशासन से तोप ली जाती है। सहरी इफ्तार से पहले तोप चलाई जाती है। आइये जानते हैं यह परंपरा

 


इनक्रिडिबल एमपी की परंपराएं कम अनोखी नहीं हैं। एमपी में रमजान की ऐसी ही परंपरा आप जानेंगे तो हैरान हो जाएंगे। हम बता रहे हैं मध्य प्रदेश रायसेन के गांवों की परंपरा की। यहां सहरी और इफ्तार से पहले रायसेन किले की प्राचीर से तोप चलाने का रिवाज है। इसी के जरिये आसपास के 25 गांवों को सूचना दी जाती है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह परंपरा करीब 200 साल पुरानी है। इस तोप की आवाज सुनकर किले के आसपास के करीब 25 गांवों में लोग रोजा शुरू करते हैं और खोलते हैं। रमजान तक के लिए इसके लिए बाकायदा लाइसेंस लिया जाता है और तोप ली जाती है। हालांकि अब तोप किले की वजह पास की पहाड़ी से चलाई जाती है।

 

 

बता दें कि रायसेन कभी नवाबों की रियासत का हिस्सा था। उस समय रमजान में लोगों को सहरी और इफ्तार की सूचना देने के लिए अनाउंसमेंट के साधन नहीं थे। स्थानीय लोगों के अनुसार रायसेन किले की प्राचीर से तोप से सेहरी और इफ्तार की सूचना दी जाए। इसके बाद 200 साल से यह परंपरा निभाई जा रही है। इसके लिए बाकायदा जिला प्रशासन से 1 महीने के लिए परमिशन ली जाती है। इसके बाद सुबह और शाम को टांके वाली मस्जिद की मीनार से पहले लाल बल्ब जलाकर सहरी और इफ्तार का सिग्नल दिया जाता है, फिर रायसेन किले की प्राचीर से तोप चलाकर लोगों को सूचना दी जाती है। इसकी जिम्मेदारी रायसेन शहर के ही एक परिवार के पास है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को कर रहे हैं। तोप चलाने वाले परवेज खान ने बताया कि इस परंपरा को उनके परिवार के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी संभाले हुए हैं।
100-150 ग्राम बारूद की जरूरत लगती
तोप चलाने के लिए स्थानिय लोग बारूद का इस्तेमाल करते हैं, जो रस्सी बम में उपयोग होता है। एक बार तोप चलाने के लिए लगभग 100-150 ग्राम बारूद की जरूरत होती है। सहरी के समय तोप चलाने के लिए सुबह तीन बजे किले पर चढ़ते हैं और फिर सहरी के समय वापस आ जाते हैं। इसी तरह इफ्तार के समय शाम को फिर किले पर पहुंचकर इफ्तार की सूचना देने के लिए तोप चलाते हैं। तोप चलाने से केवल धमाका होता है और इसकी आवाज दूर-दूर तक सुनाई देती है। किसी को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता है।
तोप की सफाई कर लौटा देते हैं प्रशासन को
रमजान बीतने के बाद तोप की सफाई कर जिला प्रशासन को हैंड ओवर कर दिया जाता है। बताया जाता है कि तोप की आवाज 25 से 30 किलोमीटर दूर तक जाती है।

Home / Raisen / Ramadan 2024 : MP के इस शहर में तोप चलने के बाद ही कर सकते हैं सहरी इफ्तार, जानें क्या है मामला

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो