खुद के हाथ की बनाई कलाकृति संजो कर ले जाते
ब्लू पॉटरी के जाने-माने नेशनल अवार्ड से सम्मानित शिल्प गुरु गोपाल सैनी ने बताया की उनके यहां कई विदेशी सैलानी इस कला का हुनर सीखने के लिए वर्कशॉप में भाग लेने के लिए पहुंचते हैं। आमतौर पर यह टूरिस्ट एक दिन की वर्कशॉप के लिए आते हैं, लेकिन कुछ सैलानी एक हफ्ते और 15 दिन की वर्कशॉप में भी भाग लेते हैं। इन लोगों को क्ले आर्ट के हुनर की बारीकियां सीखने के साथ-साथ ब्लू पॉटरी के इतिहास से भी रू-ब-रू करवाया जाता है। यह लोग वर्कशॉप में भाग लेने के बाद खुद के हाथ की बनाई कलाकृतियों को लेकर घर लौटते हैं। और जयपुर की यादों को हमेशा के लिए अपने साथ संजो कर ले जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर आयोजित हो वर्कशॉप
कलाकार गरिमा सैनी ने बताया की गुलाबी नगरी आने वाले सैलानियों को इन दिनों जितना विरासत की कला रिझा रही है। उतना ही वे खुद इस कला को समझने के लिए अपना वक्त लगा रहे हैं। यही कारण है कि अब टूर फाइनल करने के दौरान उनसे अलग-अलग क्राफ्ट को सीखने और समझने की डिमांड की जाती है। सैलानी बाकायदा इसके लिए पैसा भी खर्च कर रहे हैं। पर्यटक ब्लू पॉटरी के साथ-साथ कुकिंग आर्ट कलनेरी आर्ट, सांगानेरी ब्लॉक प्रिंटिंग, मीनाकारी, बगरू हैंड प्रिंटिंग का हुनर सीखने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। गरिमा ने पत्रिका के माध्यम से कहा की सरकारी स्तर पर भी इस तरह की कला को अंतरराष्ट्रीय मंच देने के लिए सरकार वर्कशॉप का आयोजन करें जिससे जयपुर आने वाले विदेशी सैलानी ना सिर्फ हमारी ऐतिहासिक विरासत से रू-ब-रू होंगे, बल्कि हमारी ऐतिहासिक कला से वाकिफ होंगे।
ब्लू पॉटरी का इतिहास सालों पुराना
ब्लू पॉटरी कलाकार सुधांशु कुमावत का कहना है, की राजस्थान और हस्तकला का सालों पुराना नाता रहा है। इस पावन धरती पर बहुत से महान कारीगरों ने जन्म लिया है। और अपनी कारीगरी के बाल पर न सिर्फ़ देश बल्कि विदेश में भी अपनी हुनर से देश का नाम किया है। ब्लू पॉटरी कला का नाम क्ले से बने सामान पर नीले रंग की डाई का उपयोग करने से पड़ा इसे तैयार करने में मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता है। बल्कि क्वार्ट्ज पत्थर के पाउडर, कांच के पाउडर, मुल्तानी मिट्टी, बोरेक्स, कतीरा गोंद और पानी को मिलाकर तैयार किया जाता है। कई जगह कतीरा गोंद पाउडर और साजी सोडा बाइकार्बोनेट का भी उपयोग किया जाता है। औसतन एक प्रोडक्ट को पूरा होने में कम से कम 25 से 30 दिन लगते हैं।