साहित्यकार राज खन्ना के अनुसार, अब जातीयता का विषय पुराना हो चला है। भारतीय जनता पार्टी के विरोध में अल्पसंख्यक है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के समर्थक और अल्पसंख्यकों की पार्टी के बीच मुकाबला देखा जा रहा है। सबसे ज्यादा निगाह अल्पसंख्यक मतों को लेकर है। माना जा रहा है कि अल्पसंख्यक मतों का रुझान ही निर्णायक होगा। धर्म के मुद्दों को किनारे कर देश के लिए वोट करेंगे।
कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान की राजनीतिक विज्ञान की रंजना सिंह कहती हैं कि जातीयता वर्ग और धर्म के मुद्दों को किनारे कर कर लोग इस देश के लिए वोट करेंगे और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए। हम लोगों को जातीयता से कोई लेना देना नहीं होता। उन्हें अपने दैनिक उपयोग की चीजों से ही ज्यादा मतलब होता है। वह विकास चाहते हैं कि राजनीतिक दल लोगों को दिग्भ्रमित करके जातीयता के भ्रम में उलझाते हैं लेकिन मतदाता अब जागरूक हो गया है। उसे इस सबसे अलग हटके व्यक्तिगत और राष्ट्र का विकास चाहिए।
भारत में अपनी जाति बिरादरी वाली सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने का चलन नेताओं में देखा जाता है। जातीयता का मुद्दा और समीकरण धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा है। अब लोग जातीयता से अलग हटकर प्रत्याशी की अहमियत और उसके प्रभाव को मुद्दा बनाने लगे हैं। सुलतानपुर से एक तरफ भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी मेनका गांधी हैं, जो केंद्रीय मंत्री हैं। लोगों का मानना है कि इस बार भाजपा विजयी रही तो उन्हें कोई बड़ा पद मिलेगा। सुल्तानपुर के लिए अच्छा होगा। दूसरी तरफ गठबंधन प्रत्याशी हैं जो काम कराने का दावा कर रहे हैं और वे स्थानीय हैं।