निरंजना बेन बतातीं हैं कि 12 दिन बात गांधीजी का अस्थि कलश बारडोली लाया गया। शहर के हीराचंद नगर में तब एक झोंपड़ी बनाई थी, जिसमे बापू की अस्थियां रखी गई थीं। वहां हम सब चरखा काटने गए थे। पूरी रात चरखा काटकर बापू को श्रद्धांजलि दी थी। बाद में बापू की अस्थियों को वाघेचा की तापी नदी और बारडोली की मिंढोला नदी में विसर्जन किया गया था। इस अस्थि विसर्जन यात्रा में मेरे पिता और अन्य लोगों के साथ मैं भी गई थी।आश्रम में डॉ. प्रज्ञा कलार्थी ने बतातीं हैं कि बारडोली के साथ गांधीजी का गहरा नाता रहा था। 1922 बाद गांधीजी 20 बार बारडोली आए। उन्होंने कहा कि गांधीजी ने अच्छे लोगों को जोड़कर आजादी की मूवमेंट को आगे बढ़ाया। सभी क्षेत्र के विशेषज्ञ को साथ लेकर चलने के उनके गुण ने ही उनको महात्मा बनाया।
केदारेश्वर मंदिर परिसर में है स्मारक :जहां पर महात्मा गांधी की अस्थियों का विसर्जन किया गया था, वो मिंढोला नदी के तट पर केदारेश्वर महादेव मंदिर के परिसर में स्मारक भी बनाया गया है। यह स्मारक 2010 में बनाया गया था। जिसका अनावरण गांधीवादी नेता नारायण भी देसाई (वेडछी आश्रम) ने किया था।