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सूरत

93 करोड़ का ब्रिज अब बनेगा 134 करोड़ में

सहारा दरवाजा रेलवे ओवरब्रिज और फ्लाईओवर ब्रिज के ऊंचे टेंडर पर शासक-प्रशासक ने फिक्स मैच ही खेला। मुख्य भूमिका में कंसल्टेट रहा, जिसने ब्रिज निर्माण म

सूरतOct 13, 2017 / 05:10 am

मुकेश शर्मा

93 crores bridge will now be built in 134 crores

93 crores bridge will now be built in 134 crores

सूरत।सहारा दरवाजा रेलवे ओवरब्रिज और फ्लाईओवर ब्रिज के ऊंचे टेंडर पर शासक-प्रशासक ने फिक्स मैच ही खेला। मुख्य भूमिका में कंसल्टेट रहा, जिसने ब्रिज निर्माण में संभावित मुश्किलों को देखते हुए मजबूत दलील दी। इसके बाद किसी ने रिटेंडररिंग कर ठेकेदारों के रिंग से लोहा लेने की हिम्मत नहीं दिखाई। नतीजतन 93 करोड़ रुपए का ब्रिज अब 134 करोड़ रुपए में बनेगा।

शहर में ब्रिज के अब तक के सबसे ऊंचे टेंडर को पिछले दिनों मंजूरी दी गई। मनपा प्रशासन ने ब्रिज की अनुमानित लागत 93 करोड़ रुपए बताई थी, लेकिन इसके 44.5 फीसदी ऊंचे टेंडर को मंजूरी दे गई। टेंडर स्क्रूटनी कमेटी में जिस टेंडर को मुल्तवी रखा गया था, उसे दूसरे ही दिन स्थाई समिति में पेश कर मंजूरी ले लेना मामले को संदिग्ध बनाता है। टेंडर स्क्रूटनी कमेटी की मीटिंग में सहारा दरवाजा ब्रिज के टेंडर को इसी वजह से रोका गया था कि यह 45 फीसदी ऊंचा है। दो ही टेंडरर होने की वजह से मनपा के पास रिटेंडरिंग नहीं करने की मजबूरी इसलिए थी कि यदि दोबार टेंडर जारी किया जाएगा तो घूम-फिर कर यही दोनों ठेकेदार टेंडर भरेंगे। समय और धन की बर्बादी को रोकने के लिए आयुक्त एम. थेन्नारसन ने तीन अधिकारियों के अलावा ठेकेदार फर्म और कंसल्टेंट फर्म को बुलाकर बातचीत की प्रक्रिया शुरू की। तीन अधिकारियों में डिप्टी कमिश्नर सी.वाई.भट्ट, सिटी इंजीनियर भरत दलाल और सलाहकार जतिन शाह शामिल थे।

इन्होंने कंसल्टेंट की दलीलों को सुना। कंसल्टेंट ने ट्रैफिक और भाव बढऩे की बातों को अधिकारियों के सामने रखा। ठेकेदार फर्म को नीचे लाने की कोशिश की गई, लेकिन कंसल्टेंट की दलीलों के आगे अधिकारियों ने घुटने टेक दिए। इधर, सत्ता पक्ष को तो जैसे पहले से ही जल्दी थी, चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले ब्रिज का भूमि पूजन जरूरी हो गया था। टीएससी की बैठक के दूसरे ही दिन प्रशासन ने प्रस्ताव बनाकर स्थाई समिति के समक्ष पेश कर दिया, जिसे बिना टालमटोल मंजूरी दे दी गई। बताया जा रहा है कि कमिश्नर 25 फीसदी से ऊंची रकम को मंजूरी देने की पक्ष में नहीं थे, लेकिन सत्ता पक्ष की ओर से ब्रिज का भूमि पूजन कराने का दबाव था।


पहले भी हुई है रिटेंडरिंग : ब्रिजों के मामले में ठेकदार फर्मों की मोनोपॉली की वजह से रिंग बनाते रहे हैंं। ऊंचा टेंडर भरना उनकी रणनीति में शामिल है। जरूरत से अधिक ऊंचे टेंडर को मनपा प्रशासन ने पहले भी रद्द कर रिटेंडरिंग की है। कहा जा रहा है कि इस बार जब टेंडर 45 फीसदी ऊंचा था तो प्रशासन को ठेकेदार फर्म से बातचीत करने के बजाए नए सिरे से टेंडर मंगवाने की कोशिश करनी चाहिए थी।

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