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सूरत

फिलहाल कागजों में ही है केंद्र सरकार का जल शक्ति अभियान

मानसून में व्यर्थ बह गया कीमती पानीसिलवासा में जिला प्रशासन योजना के प्रति गंभीर नहीं

सूरतSep 19, 2019 / 08:12 pm

Dinesh Bhardwaj

फिलहाल कागजों में ही है केंद्र सरकार का जल शक्ति अभियान

फिलहाल कागजों में ही है केंद्र सरकार का जल शक्ति अभियान

सिलवासा. वर्षा जल संग्रह के लिए प्रशासन के प्रयास धरातल पर नहीं दिख रहे हैं। जल संचय को लेकर केन्द्र सरकार भले गंभीर है, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा जलसंचयन की व्यवस्था कागजी साबित होती दिख रही है। मानसून में भारी बारिश के बाद गांवों में वर्षभर के लिए बारिश जल संचयन की व्यवस्था नहीं हैं। बरसात का अधिकांश पानी समुद्र में समिश्रित होता रहा। मधुबन डेम में कुल वर्षा जल का सिर्फ 1/6 अंश जल समावेशित की क्षमता है। डेम अधिकारियों के अनुसार डेम में कुल संग्रहित पानी का इस साल 6 गुणा वर्षा जल डिस्चार्ज हुआ है। सीजन में थोड़ी-थोड़ी बरसात में ही डेम से पानी डिस्चार्ज करना पड़ा है।
प्रदेश में मधुबन डेम के अलावा वर्षा का जल संग्रहित करने के अन्य बड़े स्रोत नहीं हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण की ग्रामीण व घेरलू योजनाओं की कमी हैं। ऊंचाई वाले गांवों में वर्षा जल नदी-नालों से बहकर व्यर्थ नष्ट हो जाता है। हालांकि प्रशासन ने इस वर्ष जल शक्ति अभियान के तहत रखोली में रैन वाटर हार्वेस्टिंग, दपाड़ा में फार्म पॉन्ड, आंबोली वडपाडा में चेकडेम और आंबोली में चेकडेम तैयार किया है। सिलवासा नगर परिषद ने भूजल संरक्षण के लिए डांडुल फलिया स्कूल में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया हैै। लेकिन यह सब पर्याप्त नहीं हैं। वर्षा जल संग्रहण के स्रोत नहीं होने से ग्रीष्म में पेयजल मुख्य समस्या बन जाती है।

घरों में भूमिगत टैंक


दादरा नगर हवेली में मानसून में अच्छी बारिश के बावजूद गर्मी में पानी की किल्लत आम बात है। खानवेल, रूदाना, मांदोनी, सिंदोनी, कौंचा, दुधनी, आंबोली, खेरड़ी, सुरंगी, दपाड़ा में मार्च से जून तक पानी के लिए हायतौबा मच जाती है। इन गांवों में जल संचयन की योजनाएं नहीं हैं एवं जो योजनाएं चल रही हैं वे कारगर नहीं हैं। पर्वतीय गांवों में पक्केतालाब, घरों में भूगर्त टैंक, तराई वाले जगहों पर चैकडेम बनाकर पेयजल समस्या हल हो सकती हैं। शहरी विस्तारों में छत से प्राप्त वर्षा जल को पुनर्भरण कुएं, नलकूप, बोरवेल में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में परलोकेशन टैंक, चेकडेम, डगवेल, सतही जलबांध में संचयन किया जा सकता है।

पौराणिक तालाब


नरोली में पौराणिक तालाब के निर्माण से पेयजल व सिंचाई की जरूरत पूरी हो सकती है। ग्राम पंचायत के सरपंच प्रीति दोडिय़ा ने बताया कि नरोली गांव में करीब 200 वर्ष पुराना पौराणिक तालाब समाप्त होने से पानी की समस्या बढ़ी है। यह तालाब नरोली के मध्य 35 एकड़ जमीन पर था। प्रबंधन के अभाव में आसपास के लोगों ने तालाब पर कब्जा करके इमारतें खड़ी कर दी। यह तालाब बनने से नरोली व खरड़पाड़ा विस्तार मेंं पेयजल और सिंचाई की कमी नहीं रहेगी।

बेरोकटोक खोद जा रहे बोरवेल


मानसून में अच्छी बारिश व जलाशयों के बावजूद भूजल में गिरावट आ रही है। हालात की गंभीरता से लेकर केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने मार्च में बिना परमिशन के बोरवेल व नलकूप पर रोक लगा दी थी। आदेश के बाद पेयजल स्कीम के अलावा किसी भी तरह के नए ट्यूबवेल की खुदाई पर प्रतिबंधित है। यह आदेश भूजल की स्थिति सुधारण के लिए जारी हुए थे, लेकिन बावजूद ये आदेश कागजी ही साबित हो रहे हैं।

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