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सूरत

पत्नी को परेशान नहीं करने का कोर्ट ने दिया आदेश

घरेलू हिंसा से पीडि़त विवाहिता को मिला न्याय

सूरतSep 22, 2018 / 07:58 pm

Sandip Kumar N Pateel

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पत्नी को परेशान नहीं करने का कोर्ट ने दिया आदेश

सूरत. घरेलू हिंसा से पीडि़त विवाहिता की याचिका मंजूर करते हुए कोर्ट ने पत्नी और पुत्र को परेशान नहीं करने और भरण पोषण तथा किराया चुकाने का पति और ससुराल पक्ष के लोगों को आदेश दिया।

सैयदपुरा क्षेत्र निवासी विवाहिता मीना ने अधिवक्ता प्रीति जोशी के जरिए कोर्ट में पति विनय तथा ससुराल पक्ष के अन्य लोगों के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत की थी। आरोप के मुताबिक शादी के बाद से पति और ससुराल पक्ष के लोग उसे दहेज के लिए प्रताडि़त करते थे। वर्ष 2016 में पांच लाख रुपए की मांग करते हुए ससुरालवालों ने उसे जिंदा जलाने का प्रयास किया, लेकिन वह उनकी चुंगल से भागने में सफल रही। इसके बाद घरेलू हिंसा से रक्षण पाने के लिए उसने कोर्ट से गुहार लगाई। याचिका पर सुनवाई के दौरान अधिवक्ता जोशी ने दलीलें पेश की। अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने विवाहिता की याचिका मंजूर कर ली और पत्नी तथा पुत्र को परेशान नहीं करने, पुत्र के भरण पोषण के लिए प्रतिमाह दो हजार तथा किराए के तौर पर प्रतिमाह दो हजार रुपए चुकाने का पति को आदेश दिया।
रूट कैनाल ट्रीटमेंट का क्लेम चुकाने से इनकार नहीं कर सकती बीमा कंपनी


सूरत. अस्पताल में 24 घंटे तक दाखिल नहीं रहने का कारण बताकर क्लेम नामंजूर करने वाली बीमा कंपनी को उच्च ग्राहक अदालत से झटका लगा है। कोर्ट ने बीमा कंपनी की अपील याचिका नामंजूर करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया और क्लेम की राशि ब्याज समेत चुकाने का बीमा कंपनी को आदेश दिया।

प्रकरण के अनुसार सगरामपुरा निवासी दिलीप जरीवाला ने अपना और पत्नी का न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से मेडिक्लेम खरीदा था। पॉलिसी अवधि के दौरान दिलीप की पत्नी के दांतों में दर्द होने लगा। डेंटल क्लीनिक में जाने पर चिकित्सक ने रूट कैनाल सर्जरी की। इसके बाद दिलीप जरीवाला ने उपचार पर खर्च हुए 21,281 रुपए के पाने के लिए बीमा कंपनी में आवेदन किया, लेकिन अस्पताल में 24 घंटे भर्ती नहीं होने का कारण बताते हुए बीमा कंपनी ने क्लेम नामंजूर कर दिया। इस पर दिलीप ने अधिवक्ता श्रेयस देसाई के जरिए जिला ग्राहक कोर्ट में बीमा कंपनी के खिलाफ शिकायत की। अंतिम सुनवाई के बाद जिला ग्राहक कोर्ट ने शिकायतकर्ता की याचिका मंजूर करते हुए क्लेम की राशि ब्याज समेत चुकाने का आदेश दिया था। निचली कोर्ट के फैसले के खिलाफ बीमा कंपनी ने उच्च ग्राहक कोर्ट में अपील याचिका दायर की थी। अंतिम सुनवाई के बाद उच्च ग्राहक अदालत ने निचली कोर्ट के आदेश को सही माना और अपील याचिका नामंजूर कर दी।

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