शहर की तिरूपति रेजीडेंसी में आमली विस्तार की महिलाओं ने सोशल डिस्टेंस का ध्यान रखते हुए गणगौर उत्सव रखा, जिसमें सामूहिक लोकगीत एवं ईसर-पार्वती का पूजन किया। नवविवाहिताओं एवं कन्याओं ने प्रतिमाओं का शृंगार कर 16 पिंडियां एवं ज्वारों की पूजा की।
इस दौरान ‘चुनर को म्है व्रत कियों, कठे से आई सूप, कान्हा बागा माथे, म्हारी नखराली गणगौर, ईसर जी तो पेचो बांधे, गौरा बाई पेच सवारों राज, महारा माथा न मैमद ल्यावौ, ईसरदास बीरा रो कांगसियों म्है माल लेस्या राज…’ आदि राजस्थानी गीत गाकर महिलाओं ने अपनी माटी व मारवाड़ी संस्कृति में उत्सव मनाया।
महिलाओं ने बताया कि पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा है। इस पर्व में गवरजा और ईसर की गीतों के साथ पूजा होती है। गणगौर का व्रत 15 अप्रैल को है। शाम को रंग-रंगीले ईसर गौर की टोकरी में बिंदोळी निकाली। गणगौर उत्सव 15 अप्रैल तक चलेगा। कोरोना संक्रमण के चलते उत्सव में व्यापक सावधानियां बरती जा रही हैं।
महिलाओं ने बताया कि पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा है। इस पर्व में गवरजा और ईसर की गीतों के साथ पूजा होती है। गणगौर का व्रत 15 अप्रैल को है। शाम को रंग-रंगीले ईसर गौर की टोकरी में बिंदोळी निकाली। गणगौर उत्सव 15 अप्रैल तक चलेगा। कोरोना संक्रमण के चलते उत्सव में व्यापक सावधानियां बरती जा रही हैं।