ये दिए तर्क, लेकिन… विभाग की तरफ से अपने बचाव में आरटीआई की धारा-8 (1) का हवाला दिया गया। जबकि जिन मामलों की जांच खत्म हो जाती है उनकी जानकारी आयकर विभाग को देने का प्रावधान है। क्योंकि जो कोराबारी जीएसटी में कर की चोरी करते है। वे सामान्यत आयकर में भी चोरी कर सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए जानकारी साझा करने का प्रावधान रखा गया है। ऐसे में यदि एक महत्वपूर्ण विभाग दूसरे महत्वपूर्ण विभाग को जानकारी नहीं देगा तो सरकारी कर की चोरी पर कैसे लगाम लगेगी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जब केस शुरू होता तो विभाग द्वारा जानकारी सार्वजनिक की जाती है तो फिर केस बंद होने के समय जानकारी क्यों जाहिर नहीं की जा सकती है?
नहीं किया खुलासा :
डीजीजीआई के सीपीआइओ नवीन सोनी ने पत्रिका को बताया कि आरटीआई में वहीं जानकारी दी जाती है, जो पब्लिक डोमेन में है। यदि कोई जानकारी नहीं दी गई तो उसका कारण भी बताया गया है। उन्होंने इस सवाल का जवाब भी स्पष्ट नहीं किया कि जांच खत्म होने के बाद मामलों की जानकारी आयकर विभाग को दी जाती हैं या नहीं?