मजदूरों के घर रवानगी के बाद अब कल-कारखाने कैसे चलेंगे, बहुमंजिला इमारतों के ईंट-गारे में अपना पसीना कौन घोलेगा इसकी चिंता सबको सताने लगी है। पहले लॉकडाउन में विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं और दूसरे लोगों ने उन्हें संभाले रखा था। अपनी क्षमता तक ही संस्थाएं और समाजसेवी सेवाएं दे सकते थे। दूसरा लॉकडाउन खत्म होते-होते उन्होंने भी अपने हाथ खींच लिए। तीसरा लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही इन मजदूरों के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया था।
जब मदद को वे लोग भी सामने नहीं आए, जिनके लिए मजदूर अपना पसीना बहा रहे थे, तीसरा लॉकडाउन शुरू होते ही उन्होंने सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया। इस मजबूरी में केंद्र और राज्य सरकार की देखो और इंतजार करो की नीति ने आग में घी डालने का काम किया और जिसे जैसी व्यवस्था मिली उसने घर की ओर कूच कर दिया। अपने गांव लौटने को बेचैन लोग भारी संख्या में सड़कों पर दिखे। इन लोगों को परिवहन के जो भी साधन हाथ लगे, उन्ही के सहारे वे अपने घर लौटने की कोशिश करते नजर आए। कोई पैदल ही निकल पड़ा परिवार लेकर तो किसी ने दूसरे संसाधनों से अपने घरों का रुख किया।
कई जगहों पर उन्होंने घर वापसी की व्यवस्था के लिए हंगामे भी किए। यह हंगामे चौथा लॉकडाउन शुरू होने तक जारी हैं। उद्योगों को खोलने की अनुमति के बावजूद उनके शुरू होने पर संकट इसीलिए है कि जो मजदूर अबतक किसी न किसी वजह से शहर में रुके रह गए हैं, वे भी अपने घरों को जाने की जिद किए बैठे हैं। देखते जाइए अब काम की शर्तें बदलने का मौसम शुरू हुआ है। पहले मजदूर इतने मजबूर थे कि मालिकों की हर शर्त मंजूर थी। अब दांव पलट गया है। घरों को गए मजदूर काम पर लौटेंगे तो निश्चित रूप से इस बार अपनी शर्तों पर सूरत का रुख करेंगे।