कोरोना के बाद उद्योगों में आधी-अधूरी मशीनरी चलने से लेबर कांट्रेक्टर भी दिहाड़ी मजदूरों को काम देने में असमर्थ हैं। यहीं नहीं, घरों में काम करने वाली महिलाओं को भी रोजगार नहीं मिल रहा है। उद्योग, कारखाने, संस्थान, होटल में काम करने वाले डेली वेज मजदूरों को काम के बाद रोजाना शाम को मिलने वाली पगार बंद समान है। जिले में हजारों दिहाड़ी मजदूर रोज कमाओ रोज पाओं की तर्ज पर काम करते हैं। यह मजदूर घर, दफ्तर, लेबर कांट्रेक्टर, इमारत निर्माण आदि जगह लगे हुए हैं। इन मजदूरों को दिनभर काम के बाद शाम को नगद मेहनताना चाहिए।
कोरोना के बाद कारोबार व धंधे पटरी पर पूरी तरह नहीं लौटे हैं। उद्योग, कल-कारखाने पूरी रफ्तार नहीं पकड़ पाएं हैं। काम नहीं मिलने से बेरोजगार युवा वापी रोड जामा मस्जिद, आमली पैराडाइज होटल, टोकरखाड़ा सवेरे 6 बजे दिहाड़ी के लिए जुट जाते है। इसमें एमपी, महाराष्ट्र, राजस्थान के प्रवासी मजदूरों के अलावा खानवेल, मांदोनी, रूदाना, सिंदोनी के गांवों से भी महिला पुरुष सम्मिलित हो रहे हैं। यहां से नियोक्ता काम के लिए मजदूरों को ले जाते हैं, तथा शाम को मेहताना देकर विदा कर देते हैं। जिले में चार हजार से अधिक उद्योग स्थापित होने के बाद बेरोजगारी गंभीर समस्या है।