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सूरत

CORONA EFFECT तबाही के कगार पर भारत का मेनचेस्टर

लॉकडाउन जितना लंबा खिचेगा, उतना बड़ा होगा नुकसान का आंकड़ा, हीरा कारोबार और केमिकल व अन्य उद्योगों के साथ ही ट्रेडिंग कारोबार को भी बड़ी चोट

सूरतApr 02, 2020 / 05:42 pm

विनीत शर्मा

CORONA EFFECT तबाही के कगार पर भारत का मेनचेस्टर

CORONA EFFECT तबाही के कगार पर भारत का मेनचेस्टर

विनीत शर्मा

सूरत. देश-दुनिया में भारत के मेनचेस्टर के रूप में पहचान बना चुके सूरत को कोरोना की नजर लग गई है। कोरोना के संक्रमण में जहां जनहानि की आशंकाओं को बलवती कर दिया है, लॉकडान के कारण कारोबार भी रसातल में जा रहा है। टैक्सटाइल नगरी का टैक्सटाइल उद्योग तो तबाही के कगार पर खड़ा है। लॉकडाउन जितना लंबा खिचेगा, टैक्सटाइल उद्योग के नुकसान का आंकड़ा भी उतना ही बड़ा होगा। जानकारों के मुताबिक हीरा कारोबार और केमिकल व अन्य उद्योगों के साथ ही ट्रेडिंग कारोबार को भी बड़ी चोट लगने जा रही है।
दुनियाभर में तबाही मचाने के बाद कोरोना अब भारत में भी विस्फोटक स्थिति में पहुंच चुका है। आने वाले दिनों में भारत के मेनचेस्टर सूरत शहर पर इसका व्यापक असर देखने को मिल सकता है। नोटबंदी और फिर जीएसटी से चरमरा गए सूरत के टैक्सटाइल उद्योग को कोरोना का लॉकडाउन ने तबाही के कगार पर पहुंचाने की राह तय कर दी है। कोरोना ने टैक्सटाइल उद्योग की पूरी चेन को तहस-नहस कर दिया है। रोजाना करीब साढ़े तीन करोड़ मीटर कपड़ा बनाने वाले शहर में उद्योग ठप हो गए हैं। इसका असर टैक्सटाइल से जुड़े हर घटक पर पड़ रहा है। लॉकडाउन के कारण कारोबारियों ने वीवर्स से कपड़े की खरीद बंद कर दी है। लॉकडाउन के कारण प्रोसेस हाउसों पर भी ताले पड़ गए हैं।
औसत एक मीटर कपड़े को फिनिश्ड गुड्स बनाने पर सौ रुपए का खर्च मानें तो मंदी के इस दौर में भी लॉकडाउन से पहले रोजाना करीब साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए का कोराबार शहर में हो रहा था। लॉकडाउन के कारण यह ठप हो गया है। कारोबारियों के मुताबिक यह लॉकडाउन जितना लंबा खिचेगा, उद्यमियों खाासकर प्रोसेस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को लंबा नुकसान देगा। कारोबार दोबारा शुरू होने पर वीवर्स तो दो-तीन दिनों में कपड़ा उत्पादन शुरू करने की स्थिति में आ जाएंगे, लेकिन प्रोसेस हाउसों को खुद को तैयार करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ जाएगी।
प्रोसेस हाउस पानी आधारित उद्योग हैं। ऐसे में लंबे वक्त तक बंद पड़ी मशीनों को दोबारा शुरू करने के लिए उन्हें नए सिरे से मेहनत करनी पड़ेगी। शुरुआती दिनों में पूरी ताकत मशीनों की ऑइलिंग-ग्रीसिंग में झोंकनी होगी। तय है कि इतने से बात नहीं बनने वाली। सामान्य स्थिति में जब चार-पांच दिनों के लिए मशीनें बंद करनी पड़ती हैं तो उसे शुरू करने में तीन-चार दिन लग जाते हैं। लंबे समय तक मशीनें बंद रहने से उनमें जंग लगना तय है। ऐसे में मशीनों की सामान्य मेंटिनेंस से उन्हें काम करने लायक नहीं बनाया जा सकता।
प्रोसेस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के मुताबिक मशीनों में लगी जंग को साफ करने में 15 दिन से अधिक समय लग सकता है। इस दौरान मशीनों के कई पाट्र्स काम करने लायक नहीं बचेंगे, जिन्हें बदलना पड़ेगा। कपड़ा उद्यमी संजय सरावगी ने बताया कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बदले जा रहे पार्ट की उपलब्धता की स्थिति क्या है। इन मशीनों को दोबारा खड़ा करने में समय ही नहीं बड़ी रकम भी खर्च करनी पड़ सकती है। प्रोसेस उद्यमियों के लिए यह संकट का समय होगा कि जब बीते कुछ वर्षों से प्रोसेस इकाइयां बंद हो रही हों, उन्हें दुरुस्त करने में बड़ी रकम का निवेश किया जाए।
कंपोजिट इकाइयों को होगा बड़ा नुकसान

इस लॉकडाउन का बड़ा नुकसान कंपोजिट इकाइयों को होगा। अनआर्गेनाइज्ड टैक्सटाइल सेक्टर पूरी तरह चेन लिंकिंग से जुड़ा है। कई उद्यमियों ने इस चेन पर अपनी निर्भरता खत्म करने के लिए कंपोजिट सेग्मेंट तैयार किया है। यानी कपड़ा बनने से लेकर फिनिश्ड गुड्स तक सब काम एक ही परिसर में या स्वामित्व में कराने की व्यवस्था। लॉकडाउन के कारण कंपोजिट यूनिट्स में भी तालाबंदी के हालात हैं। जब लॉकडाउन खत्म होगा, जहां चेन लिंकिंग से जुड़े कारोबारी अपने-अपने नुकसान की भरपाई की व्यवस्था करेंगे, कंपोजिट युनिट मालिकों को पूरा नुकसान खुद ही वहन करना होगा।
पटरी पर लौटने में लगेगा एक महीना

लॉकडाउन के बाद जब भी कारोबारी गतिविधियां शुरू होंगी, टैक्सटाइल उद्योग को पटरी पर लौटने में एक महीने से अधिक का समय लग जाएगा। फोग्वा के अध्यक्ष अशोक जीरावाला ने बताया कि वीवर्स हालांकि एक सप्ताह के भीतर कपड़ा उत्पादन शुरू कर देंगे, लेकिन प्रोसेस इकाइयों के दोबारा शुरू होने में 20 से 25 दिन लग सकते हैं। ऐसे में कपड़े के प्रोसेस होकर फिनिश्ड गुड्स बनकर ट्रेडर तक पहुंचने में एक महीने से अधिक का समय लग जाएगा। यह भी इस बात पर निर्भर करेगा कि लॉकडाउन की अवधि ज्यादा लंबी तो नहीं हो रही।
तैयार कपड़े की सार-संभाल भी मुश्किल

लॉकडाउन से पहले जो स्टॉक कारोबारियों, प्रोसेस हाउसों और वीवर्स के पास पड़ा है, उसकी सार-संभाल भी आसान नहीं है। लॉकडाउन के कारण इकाइयां बंद पड़ी हैं और दुकानों में भी शटर डाउन हैं। लोग घरों से बाहर निकलने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में वीवर्स के पास जो माल बचा रह गया है उसके साथ ही प्रोसेस हाउसों में प्रोसेस के लिए आए माल की सुरक्षा को लेकर उद्यमियों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। कारोबारियों की स्थिति और भी खराब है। प्रोसेस माल को फिनिश्ड गुड्स तक लाने में उन्होंने जॉबवर्क पर भी बड़ा निवेश किया है। यह तैयार माल दुकानों में बंद पड़ा है। लंबे वक्त तक तैयार माल का ऐसे ही पड़े रहना भी उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करेगा।
सरकार से हो सकती है पैकेज की मांग

स्थिति सामान्य होने के बाद टैक्सटाइल उद्यमी सरकार से बेल पैकेज की मांग कर सकते हैं। उद्यमियों के मुताबिक लॉकडाउन के कारण हो रहे नुकसान की भरपाई अकेले उनके बूते संभव नहीं है। चरमरा गए टैक्सटाइल उद्योग को नए सिरे से खड़ा करने के लिए सरकार को आर्थिक पैकेज देना ही चाहिए। लॉकडाउन के बाद जब कारोबार पटरी पर लौटेगा उसके बाद दक्षिण गुजरात चैम्बर ऑफ कॉमर्स और उद्यमियों की अन्य नियामक संस्थाओं के माध्यम से राज्य व केंद्र सरकार को इस संबंध में मांगपत्र व प्रजेंटेशन भेजा जा सकता है।

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