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सूरत

रैन बसेरा होता तो बच जातीं कई जानें

जिले मे नहीं है रेन बसेरा, हादसे के बाद जागे राज्य सरकार के मंत्री, वसावा ने रैन बसेरा बनाने का आश्वासन दिया

सूरतJan 19, 2021 / 06:51 pm

विनीत शर्मा

रैन बसेरा होता तो बच जातीं कई जानें

रैन बसेरा होता तो बच जातीं कई जानें

बारडोली. सूरत शहर के साथ ही जिले में भी औद्योगिक विकास के कारण अन्य राज्यों से लाखों प्रवासी मजदूर कामधंधे की तलाश में आते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 48 के आसपास पलसाणा से कीम कोसंबा तक औद्योगिक इकाइयां हैं। प्रवासी मजदूरों के लिए रहने की कोई व्यवस्था नहीं होने से उन्हें सडक़ के किनारे फुटपाथ पर या फिर खुले में झोपड़ी बनाकर रहना पड़ता है। सोमवार आधी रात हुए हादसे में मारे गए श्रमिक मुकम्मल आवास की व्यवस्था नहीं होने के कारण ही फुटपाथ पर सो रहे थे।
गरीबों के उद्धार का दावा करने वाली सरकार ने अबतक जिले में कहीं भी रैन बसेरा तक नहीं बनाया है। नौकरी के लिए दूसरे राज्यों से यहां आने वाले श्रमिक परिवार सीमित आमदनी के कारण मकान का किराया भी नहीं निकाल पाते। सुविधा के अभाव में श्रमजीवी परिवारों को महिला और बच्चों के साथ फुटपाथ पर ही सोना पड़ता है। ठंडी हो या गर्मी या फिर मॉनसून हर मौसम में खुला आसमान ही इनकी छत बना हुआ है। कीम में हुई दुर्घटना में जान गंवाने वाले मजदूर भी इसी मजबूरी के चलते फुटपाथ पर सो रहे थे। सरकार ने औद्योगिक क्षेत्रों में शैल्टर होम या रैन बसेरा की सुविधा दी होती तो हादसे में इनकी जान नहीं जाती। हादसे के बाद जागे राज्य सरकार में मंत्री और क्षेत्र के विधायक गणपत वसावा ने हालांकि दावा किया है कि आने वाले दिनों में जिले में रैन बसेरा बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

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