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सूरत

Making of Modi-3 : जोखिम उठाने में ही नहीं, योजना बनाने में माहिर

साहसी निर्णयों के चलते मोदी की छवि नकारात्मक बनी, खूब आलोचनाएं झेलनी पड़ी, अपने कड़े फैसलों से बार-बार दुनिया को चौंकाते रहते हैं और उनका यह अंदाज कतई नया नहीं है…

सूरतMay 29, 2019 / 10:38 pm

Rajesh Kumar Kasera

jaipur

Making of Modi-3 : जोखिम उठाने में ही नहीं, योजना बनाने में माहिर

– राजेश कसेरा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने कड़े फैसलों से बार-बार दुनिया को चौंकाते रहते हैं और उनका यह अंदाज कतई नया नहीं है। राजनीति के अखाड़े में दस्तक देने से पहले भी निजी जिन्दगी में वे कई कड़े निर्णय कर चुके हैं। 13 वर्ष की उम्र में जसोदा बेन चमनलाल से सगाई और 17 वर्ष में विवाह होने के बाद जिम्मेदारी उठाने का भाव में मन में आया तो देश सेवा को चुन लिया। गृहस्थ जीवन के साथ घर त्याग दिया और उस मंजिल की ओर बढ़ चले, जहां पहुंचने का रास्ता सिर्फ उनको पता था। यही कारण रहा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भ्रष्टाचार विरोधी नवनिर्माण आंदोलन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा से जुड़ाव के बाद जो भी पद या काम मिला उसे पूर्ण निष्ठा के साथ किया और समकक्षों पर ऊर्जावान व्यक्तित्व, कुशल नेतृत्वकर्ता और क्षमताओं से भरपूर कार्यकर्ता के रुप में छाप भी छोड़ी।
1990 के दशक में जब देश में मिली-जुली सरकारों के बनने का दौर आया, उस दौरान भी संगठन और पार्टी को मोदी ने अपनी विचारधारा से अवगत कराया कि राज्य हो या प्रदेश स्थिर सरकारें निर्णय करने में समक्ष होती हैं। इसी सोच को उन्होंने 2001 से 2014 तक चार बार मुख्यमंत्री रहते हुए साबित भी किया। इतना ही नहीं, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने मोदी के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को उप मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने ठुकरा दिया। अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को स्पष्ट भी किया कि यदि गुजरात की जिम्मेदारी देनी है तो पूरी दें, अन्यथा नहीं दें।
इसके बाद 3 अक्टूबर 2001 को वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने। साहसी निर्णयों की आदत के चलते ही उनकी नकारात्मक छवि भी बनी और आलोचनाओं को झेलना पड़ा। पर, मोदी को निकट से जानने वालों का कहना है कि विपरीत परिस्थितियां उनको कारगर कदम उठाने के लिए और प्रेरित करती हैं। यही कारण रहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान मोदी ने कई ऐसे निर्णय किए, जो विकास के आदर्श बन गए और इसी मॉडल पर 2014 में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता में दमदार वापसी की। मोदी ने बड़े निर्णयों को लेने वाली अपनी शैली को पांच साल प्रधानमंत्री रहते हुए भी बखूबी दिखाया और जो कुछ किया, उसकी भनक कभी विपक्षियों और साथ वालों को भी नहीं लग पाई।


मोदी की आदर्श योजनाएं, जो बनीं मॉडल


पंचामृत योजना- प्रदेश के एकीकृत विकास की पंचायामी योजना, सुजलाम् सुफलाम्- जलस्रोतों का उचित और समेकित उपयोग जिससे जल बर्बादी को रोका जा सके, कृषि महोत्सव- उपजाऊ भूमि के लिए शोध प्रयोगशालाएं, चिरंजीवी योजना- नवजात शिशु की मृत्यु दर में कमी लाने के लिए, मातृ वन्दना– जच्चा व बच्चा के स्वास्थ्य की रक्षार्थ, बेटी बचाओ- भ्रूण हत्या और लिंगानुपात पर अंकुश, ज्योतिग्राम योजना– प्रत्येक गांव में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य , कर्मयोगी अभियान– सरकारी कर्मचारियों में कर्तव्य के प्रति निष्ठा जागृत करने, कन्या कलावाणी योजना– महिला साक्षरता और शिक्षा के प्रति जागरुकता बढ़ाने, बालभोग योजना– निर्धन छात्रों को विद्यालय में दोपहर भोजन देने जैसी समुचित विकास की कई योजनाओं पर मोदी ने प्रमुखता से काम किया। ये योजनाएं देश में आदर्श भी बनीं।


सबको याद है वनबंधु विकास कार्यक्रम


मोदी ने आदिवासी और वनवासी क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए भी गुजरात में वनबन्धु विकास का दस सूत्री कार्यक्रम चलाया। इसमें पांच लाख परिवारों को रोजगार, उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता, आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, आवास, स्वच्छ पेयजल, सिंचाई, समग्र विद्युतीकरण, प्रत्येक मौसम में सड़क मार्ग की उपलब्धता और शहरी विकास का लक्ष्य तय किया गया, जिसकी व्यक्तिगत मॉनिटरिंग खुद मोदी ने की।

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