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सूरत

वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 को समझने की जरूरत

ष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने कहा कि लोगों में जागरुकता जरूरी है, देश को कब्जाने देने की साजिश रच रही सरकारें, एक्ट का सेक्शन 40 देता है असीमित अधिकार

सूरतSep 12, 2021 / 09:06 pm

विनीत शर्मा

वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 को समझने की जरूरत

वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 को समझने की जरूरत

सूरत. विचारक पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने कहा कि लोगों को संसद के कामकाज पर बारीक नजर रखने की जरूरत है। सरकारें वोटबैंक बनाने के फेर में देश को कब्जाने देने की साजिशें रच रही हैं और हम गैरजरूरी मुद्दों में उलझे हुए हैं। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 35 ए के बाद अब लोगों को वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 पर जागरुक होने की जरूरत है।
पूर्व पत्रकार पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ रविवार को संवाददाताओं से बात कर रहे थे। वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसका एक प्रावधान आर्टिकल 40 बेहद खतरनाक है। यह बोर्ड को यह अधिकार देता है कि बोर्ड के दो सदस्यों को देश में कहीं भी यह लगे कि कोई संपत्ति पहले वक्फ की थी, वह उसे अपने कब्जे में ले सकता है। बीते एक दशक में देश में इस कानून के माध्यम से सरकारी जमीनों को कब्जाने का काम हो रहा है। इलाहाबाद में चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में पार्क में मस्जिद, मजार और दूसरे निर्माण हो गए। मामला जानकारी में आया तो टीम के एक सदस्य विष्णु शंकर जैन ने हाइकोर्ट में पिटीशन डाली थी। हाइकोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा है। इस मामले में वक्फ बोर्ड का दावा है कि यह जमीन उसकी है। आंध्रप्रदेश के एक जज के हवाले से उन्होंने कहा कि जज के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा जमीन रेलवे के पास है। उसके बाद डिफेंस और फिर वक्फ बोर्ड के पास है जमीन का कब्जा। आए दिन मामले सामने आते हैं, जब अचानक मजारें अस्तित्व में आ रही हैं। दिल्ली के संजय गांधी उद्यान में भी मजार का मामला सामने आया है। उन्होंने कहा कि इस एक्ट के बाद से सरकारी जमीन घेरने का सिलसिला देशभर में चल रहा है।
2005 में बनी सच्चर कमेटी के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कमेटी संवैधानिक नहीं है। इस पर राष्टपति ने हस्ताक्षर ही नहीं किए हैं और 2006 से इसके बहाने हजारों करोड़ रुपए मुसलमानों के अपलिफ्टमेंट के नाम पर खर्च हो रहे हैं। उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग पर भी सवाल उठाते हुए उसके दुरुपयोग की बात कही। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के साथ ही राज्यों में भी अल्पसंख्यक आयोग बने हैं। अल्पसंख्यकों को दोनों आयोगों से आर्थिक सहायता दी जा रही है। अल्पसंख्यक होने के क्राइटेरिया को लेकर सरकार के पास कोई नीति नहीं है। यह बात सरकार ने एक आरटीआइ में मानी है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने अल्पसंख्यक की जो परिभाषा तय की है, उसके मुताबिक कुल आबादी का 1.5 फीसदी आबादी वाले लोगों को ही अल्पसंख्यक माना जा सकता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कश्मीर, पंजाब, लक्ष्यदीप, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड समेत जिन नौ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं दिया जा रहा। प्लेसिस ऑफ वरशिप एक्ट भी इसी तरह का कानून है। देशभर के 30 हजार मंदिरों से हिंदुओं का दावा इसी बिना पर खारिज कर दिया गया।
बंदूक के सामने बौनी हुई दुनिया

बंदूक के सामने पूरी दुनिया बौनी होकर रह गई है। अमरीका के नौ-ग्यारह का जिक्र करते हुए कहा कि अफगानिस्तान प्रकरण के बाद एक ही संदेश गया कि बंदूक उठा कर लड़ते रहोगे फिर भी एक दिन दुनिया तुम्हें मान्यता देगी। अशिक्षा और गरीबी का आतंक से कोई संबंध नहीं है। कई ऐसे मामले हैं, जहां पढ़े लिखे मुसलमान आतंक का पर्याय बने हैं। रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी मुसलमानों का मामला सामने रखते हुए उन्होंने कहा कि उनके पक्ष को रखने के लिए तीन पूर्व कानून मंत्री समेत एक पूरी टीम कोर्ट में खड़ी होती है। कोर्ट में इसका बड़ा महत्व होता है।
वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट का यह है आर्टिकल 40

अंग्रेजों ने वर्ष 1921 में वक्फ बोर्ड का गठन किया था। पहले 1956 और फिर 1995 में इसमें संशोधन हुए। वर्ष 2013 में संसद ने वक्फ प्रॉपर्टी एक्ट 2013 को पारित किया। इसका एक प्रावधान सेक्शन 40 बेहद खतरनाक है। इसके मुताबिक बोर्ड के कोई दो लोग चाहें तो देशभर में किसी भी सम्पत्ति को वक्फ की संपत्ति बता सकते हैं। इसके लिए उन्हें कोई साक्ष्य देने की जरूरत नहीं है। दोनों सदस्य जिला मजिस्ट्रेट या किसी भी जिम्मेदार अधिकारी को 24 से 72 घंटे में उसे खाली करने का आदेश दे सकते हैं। ऐसी सूरत में पूरी मशीनरी को उस आदेश पर अमल कराना होगा। हाइकोर्ट में ऐसे मामलों की सुनवाई नहीं हो सकती। पीडि़त को इसकी पिटीशन लेकर वक्फ बोर्ड के ट्रिब्यूनल में जाना होगा।

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