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सूरत

CSR SCAM : आईजी बोले – घोटाला नहीं हुआ, धोखाधड़ी हुई

सीएसआर प्रकरण : मुख्य आरोपी फरार, कई सवालों के जवाब बाकी, प्रशासनिक अधिकारियों की पैरवी करने पुलिस महानिरीक्षक आए आगे…

सूरतJun 29, 2018 / 11:12 pm

Rajesh Kumar Kasera

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CSR SCAM : आईजी बोले – घोटाला नहीं हुआ, धोखाधड़ी हुई

सूरत. सीएसआर की आड़ में सरकारी तंत्र को चपत लगाने के गंभीर मामले में शुक्रवार को एक और नया मोड़ आ गया। डांग पुलिस की कार्रवाई के बाद अगले ही दिन सूरत रेंज के महानिरीक्षक जीएस मलिक ने आनन-फानन में मीडिया को बुलाकर उनके समक्ष डांग जिला प्रशासन को ‘क्लीन चिट’ दे दी। इतना ही नहीं, वे बोले कि पूरे मामले में कोई घोटाला नहीं हुआ। प्रशासन ने किसी एनजीओ को सरकारी योजना का काम नहीं सौंपा। न ही सरकारी अनुदान जारी किया। आईजी ने सारा ठीकरा दुबई की यूनिवर्सल रोबो इनोवेशन कम्पनी के एमडी अंकित मेहता और निदेशक भावेश्री दावड़ा पर फोड़ा और उनको शातिर बताया।
हालांकि आईजी मलिक ने यह नहीं बताया कि कैसे एक साल तक बाहरी लोग तंत्र के बीच बैठकर मनमानी करते रहे? गरीब किसानों से वसूली करते रहे? किन नियमों के तहत डांग जिला कलक्ट्री परिसर में सीएसआर के लिए सरकारी विभाग का कमरा एनजीओ कृषि विकास सेल को आवंटित कर दिया गया? एक महीने पहले हुई शिकायत पर इतनी देरी से कार्रवाई क्यों हुई? कौन-कौन से बड़े नाम इस घोटाले में शामिल हैं? इसके अलावा डांग जिला कलक्टर और गृह मंत्रालय के बड़े अधिकारी पर उठे सवालों को भी उन्होंने टाल दिया।

गरीब किसानों के साथ की धोखाधड़ी


आईजी मलिक ने बताया कि दुबई की यूनिवर्सल रोबो इनोवेशन कम्पनी अपनी कॉर्पोरेट सोश्यल रेस्पोंसिबिलिटी (सीएसआर) के तहत २५ करोड़ रुपए का काम डांग के आदिवासी किसानों की भलाई के लिए करना चाहती थी। इसका प्रस्ताव उन्होंने डांग जिला कलक्टर बीके कुमार को दिया। लेकिन सालभर में कोई काम नहीं किया। उल्टे किसानों को झांसा देकर फॉर्म भरवाए और 500-500 रुपए बतौर रजिस्ट्रेशन शुल्क ले लिए। कुछ किसानों ने इसकी शिकायत दर्ज कराई। लेकिन इनकी संख्या कितनी है और इनसे कितनी राशि वसूली गई इसका आंकड़ा फिलहाल बता पाना मुश्किल है। इन्हीं मामलों को लेकर डांग प्रशासन की ओर से धोखाधड़ी की प्राथमिकी एक माह पहले दर्ज करवाई गई थी।

महिला संचालिका को किया गिरफ्तार


आईजी ने बताया कि मामले की जांच के कई पहलू सामने आने के बाद ही नवसारी से भावेश्री दावड़ा को गिरफ्तार किया गया। धोखाधड़ी प्रकरण का मास्टरमाइंड अंकित मेहता फरार है और पुलिस उसको ढूंढ रही है। इधर, शातिर भावेश्री पूछताछ में पुलिस को सहयोग नहीं कर रही है। अपनी पहचान तक ठीक से नहीं बता रही है। बीती रात मैंने खुद दो घंटे पूछताछ की, लेकिन कुछ नहीं बताया।

पुलिस ने यह सब किया बरामद


जांच के लिए पुलिस की आठ टीमें गठित की गईं। इन्होंने मुंबई में तीन, नवसारी, अहमदाबाद में दो-दो और गांधीनगर में एक ठिकाने पर दबिश दी। इन ठिकानों से 13 अलग-अलग कंपनियों के नाम की बैंक चेक बुकें, नौ कंपनियों के निदेशकों और प्रोपराइटर्स की सीलें, नौ मोबाइल, तीन पेन ड्राइव, एक टेबलेट, दो लेपटॉप, चार अलग कंपनियों के विजिटिंग कार्ड, पांच आलीशान कारें और एक मोटरसाइकिल शामिल हैं। आईजी मलिक ने किसी भी कंपनी के नामों का खुलासा नहीं किया, जिनके दस्तावेज मिले हैं।

राजस्थान पत्रिका ने आईजी मलिक से की सीधी बात


सवाल – एक महीने पहले एफआईआर दर्ज हुई तो कार्रवाई में इतना समय क्यों लगा?
आईजी- जांच जारी थी। जिन कंपनियों के नाम बताए थे रजिस्ट्रेशन कार्यालय से उनकी जानकारी लेने की प्रक्रिया चल रही थी।

सवाल – पुलिस को धोखाधड़ी का पता चल गया था तो किसी की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई?
आईजी- शिकायत की पुष्टि कर साक्ष्य साक्ष्य जुटाए जा रहे थे। इसके बाद ही गिरफ्तारी की गई।
सवाल – गृह मंत्रालय के बड़े अधिकारी और डांग कलक्टर पर भी सवाल खड़े हुए हैं? क्या इनको जांच में शामिल किया जाएगा?
आईजी – इन आरोपों में तथ्य नहीं हैं। आरोपी अपने बचाव के लिए ऐसे आरोप लगा रहे हैं।
सवाल – क्या आप प्रशासनिक अधिकारियों को क्लीन चीट दे रहे है?
आईजी – नहीं, जो भी तथ्य सामने आएंगे उसकी जांच करेंगे।

सवाल – एक साल तक दोनों आरोपी कलक्ट्रेट परिसर में कार्यालय चलाते रहे, कभी उनके काम की समीक्षा क्यों नहीं हुई?
आईजी – इस बारे में डांग कलक्टर जवाब दे सकते हैं।

सवाल – जो कंपनी सीएसआर के तहत 25 करोड़ खर्च करने वाली थी, उससे एक साल तक कोई संपर्क नहीं किया गया?
आईजी- इस बारे में भी जिला कलक्टर बेहतर बता सकते हैं।

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