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हर साल लाखों पौधों का रोपण, फिर भी पेड़ कम

locationसूरतPublished: Apr 27, 2019 09:49:42 pm

Submitted by:

Sunil Mishra

कटाई से भी जंगल हो रहे विरल

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हर साल लाखों पौधों का रोपण, फिर भी पेड़ कम


सिलवासा. वन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष जंगलों एवं सार्वजनिक स्थलों पर लाखों पौधे लगाए लगाए जाते हैं। पौधारोपण के बाद देखभाल सही नहीं होने से पौधे पेड़ बनने से पहले नष्ट हो जाते हैं। यह सिलसिला पिछले लम्बे समय से चल रहा है।
मांदोनी, बेड़पा, खेड़पा, सिंदोनी, चिंसदा, कौंचा, खानवेल, रांधा, उमरवरणी, किलवणी, मांदोनी के कालसूनपाड़ा वनारक्षित क्षेत्र में मानसून के दौरान हजारों पौधों का रोपण किया गया था। यह पौधे अब जीवित नहीं हैं। पानी और सिंचाई के अभाव से पौधे या तो नष्ट हो गए हैं अथवा कुल्हाड़ी की भेंट चढ़ चुके हैं। जंगलों में खाली भूभाग पर वन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष लाखों पौधारोपण किया जाता है। इसके बावजूद जंगलों में पेड़ बढऩे की बजाए कम हो रहे हैं। मानसून में रोपे गए पौधों की ढंग से सुरक्षा नहीं होने से आसपास के लोग काटकर ले जाते हैं। कई जगह मवेशियों के शिकार हो रहे हैं। जंगलों में वनाधिकार एक्ट 2006 के आने से अतिक्रमण ज्यादा बढ़ा है, जिससे पेड़ों की सुरक्षा प्रभावित हुई है। पेड़ों के लगातार कटने से आरक्षित घने जंगल विरल हो गए हैं। मानसून आने से पूर्व आसपास के लोग जंगलों में तरुण पौधे काट लेते हैं, बाद में इन्हें खेतों में जलाकर खाद बनाई जाती है। आरक्षित वनों की देखभाल के लिए वन विभाग की ओर से सैकड़ों गार्ड रखे गए हैं, लेकिन पेड़ों की कटाई पर अंकुश नही लगा है। वन अधिकारी ए परिहार का कहना है कि वनों मे पेड़ काटना गुनाह है। पेड़ों की सुरक्षा के लिए बीट अधिकारी को जिम्मेदारी दी है।

यहां हैं आरक्षित जंगल
मांदोनी, बेड़पा, खेड़पा, बेसदा, वांसदा, सिंदोनी, दुधनी, अंबाबारी, जमालपाड़ा, कौंचा, बिलदरी, गुनसा, घोड़बारी, खेररबाड़ी, मेढ़ा, कोठार, गोरातपाड़ा, खुटली, रूदाना, तलावली, उमरवरणी, आंबोली, बिन्द्राबीन, डोलारा, करचगाम, पारजाई, कला, खेरड़ी, खड़ोली, दपाड़ा, तिनोड़ा, मधुबन, आपटी, चिखली, पाटी, सुरंगी, सिली, उमरकुई, फलांडी।

पुर्तगाली शासन से लकड़ी का कारोबार
मानसून में अतिवृष्टि के कारण दादरा नगर हवेली प्राचीन काल से जंगली लकडिय़ों के व्यापार लिए जाना जाता रहा है। पुर्तगीज शासन में यहां से देश विदेश में लकडिय़ों का व्यापार होता था। मुक्ति से पहले जंगलों में बहुमूल्य लकडिय़ां उपलब्ध थी। लकडिय़ों के व्यापार के लिए लुहारी के जंगल में वाणिज्यिक कार्यालय खोला गया था, जो आज भी विद्यमान है। 1980 के दशक में भारत सरकार ने प्रदेश को 40 प्रतिशत वनारक्षित करते हुए लकड़ी काटने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
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