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सूरत

रेड अलर्ट : जलवायु परिवर्तन का शिकार हो रहे शहरी पेड़

यातायात और औद्योगीकरण ! बढ़ते तापमान से कार्बन से प्रदूषण भी! ऐसे में अगर शहरों के पेड़ ही जलवायु परिवर्तन का शिकार होंगे, तो शहरों को कौन बचाएगा? शहरी कहां जाएंगे?

सूरतDec 11, 2023 / 03:00 pm

pradeep joshi

रेड अलर्ट : जलवायु परिवर्तन का शिकार हो रहे शहरी पेड़

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गेस्ट राइटर का लोगो व फोटोपिछले सप्ताह दो अलग-अलग रिपोर्टें प्रकाश में आईं। न्यूयॉर्क टाइम्स में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें कहा गया था कि अगर नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करना है और बढ़ते तापमान से निपटना है तो वन संरक्षण और वन विस्तार ही रामबाण उपाय है! इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए अधिकतम पेड़ों से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में विश्व आर्थिक मंच के वन ट्रिलियन ट्रीज़ प्रोग्राम के लेख भी प्रस्तुत किए गए। दूसरी रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की समस्याओं के सबसे बड़े शिकार शहरी पेड़ हैं। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में शहरी पेड़ों की हालत बेहद खराब है, जहां भारी बारिश या उच्च तापमान का सबसे पहले शिकार यही पेड़ बनते हैं! दूसरी रिपोर्ट पढ़ते ही पिछले वर्षों के बवंडर आंखों के सामने से गुज़र गए। खासकर तब जब सूरत और गुजरात सहित समुद्री सीमा पर कई शहरों में पेड़ ताश के महल की तरह गिर रहे थे। दूसरी ओर, जिस गति से शहरों व आसपास विकास के चलते पुराने पेड़ों को काटा जा रहा है, उसके मुकाबले इतने पेड़ नहीं लगाए जा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के 164 प्रमुख शहरों में 65 से 70% पेड़ों की प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में हैं। इसलिए इस सदी के मध्य तक 70 से 75% शहरी वृक्ष प्रजातियां गंभीर रूप से प्रभावित होंगी।दो महत्वपूर्ण रिपोर्टों में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन, खासकर बढ़ते तापमान और कार्बन उत्सर्जन से निपटने में वनों की भूमिका बेहद अहम साबित होगी। वहीं जलवायु परिवर्तन का शहरी पेड़ों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। क्या ये दोनों रिपोर्ट आंखें खोलने वाली नहीं हैं? विश्व की अधिकांश जनसंख्या तो अब शहरों में रहती है। जो शहर पहले से ही कम पेड़ों की समस्या से जूझ रहे हैं. उस पर भी यातायात और औद्योगीकरण ! इसलिए बढ़ते तापमान से कार्बन से प्रदूषण भी! ऐसे में अगर शहरों के पेड़ ही जलवायु परिवर्तन का शिकार होंगे, तो शहरों को कौन बचाएगा? शहरी कहां जाएंगे?शहरों में जैव विविधता की भी समान आवश्यकता है और जैव विविधता पेड़ों से ही आती है! इसलिए शहरों के पेड़ जलवायु परिवर्तन का शिकार होंगे, तो शहर की जैव विविधता भी प्रभावित होगी, जिसका सीधा असर सामूहिक रूप से स्वास्थ्य पर पड़ेगा। इसका मतलब यह है कि भारत सहित दुनिया के शहरों और कस्बों के लाखों लोग अब जलवायु परिवर्तन के कारण 360 डिग्री जोखिम में हैं।फिर क्या करें?समय की मांग है कि शहरी क्षेत्रों में पेड़ लगाने से लेकर देखभाल तक नगर पालिकाओं को बेहद सख्त नियम अनुपालन और बजट आवंटन करना होगा। वर्तमान में शहरों में दस में से तीन पेड़ गैर-देशी प्रजातियों के हैं, जो बहुत गलत है। दूसरी ओर जो पेड़ हवा के संपर्क में रहते हैं, उन्हें उचित गड्ढे या रखरखाव नहीं मिलता। इसलिए हर बार कहूंगा कि शहरों को अब बगीचों की नहीं, बल्कि शहरी वनों की जरूरत है। सड़क किनारे या डिवाइडर पर लगाए जाने वाले पेड़ शहर की आबादी के लिए पर्याप्त नहीं होंगे। हम डिवाइडर पर बरगद, पीपल, आम, नीम या ज्वार नहीं लगा सकते। वहां सजावटी पेड़ ही लगते हैं। सजावटी पेड़ों को शायद शहरी हरियाली तो कहा जा सकता, लेकिन प्राणदायिनी नहीं! इसलिए, बहुत बड़ी संख्या में सही ढंग से देखभाल के साथ देशी प्रजातियों के पेड़ों को युद्धस्तर पर लगाना बहुत आवश्यक है। सुझाव है कि प्रत्येक नगर पालिका को भी एक सख्त शहरी वन अधिनियम बनाना चाहिए, जिससे शहरी वनों को बढ़ावा मिले।अन्यथा, एक तरफ विकास और दूसरी तरफ अनियमित बारिश, अत्यधिक गर्मी और तूफान का शहरी क्षेत्र के पेड़ों पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ेगा। अगर पेड़ों को कष्ट झेलना पड़ा, तो इंसानों को ही भुगतना पड़ेगा।
– विरल देसाई,(लेखक पर्यावरणविद् और ‘सत्याग्रह अगेंस्ट पोल्युशन एन्ड कलाइमेट चेंज’ आंदोलन के प्रणेता हैं)

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