राज्य सरकार ने शहर का सीमा विस्तार करने के साथ ही वर्ष 2020 में नए सीमांकन पर भी मुहर लगाई थी। उसी वक्त साफ हो गया था कि मनपा का अगला चुनाव कांग्रेस के लिए चुनौतीभरा साबित होने जा रहा है। नए सीमांकन ने बरसों से अपनी सीट पर जीत दर्ज करते आ रहे कांग्रेस नेताओं को मुश्किल में डाल दिया था। जिस तरह से विभिन्न क्षेत्रों का समायोजन हुआ था, उससे साफ था कि बोर्ड में दोबारा एंट्री लेने के लिए कांग्रेस नेताओं को इस बार पापड़ बेलने पड़ जाएंगे। इस स्थिति से पार पाने के लिए समय रहते कांग्रेस संगठन वैकल्पिक योजना नहीं बना पाया। चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतकर कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ गया।
सीमांकन से किसी तरह समझौता होता भी, लेकिन ऐन मौके पर टिकट वितरण को लेकर पाटीदार आंदोलन आरक्षण समिति से हुई अनबन ने कांग्रेस की संभावनाओं को और क्षीण कर दिया। एक ओर नए सीमांकन के बाद जुड़े मतदाताओं के बीच पैठ बनानी थी और दूसरी तरफ पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति की नाराजगी के असर को कम करना था। दोनों ही मोर्चों पर कांग्रेस बुरी तरह विफल रही। यही वजह है कि मनपा बोर्ड में नेता विपक्ष रहे प्रफुल्ल तोगडिय़ा समेत कई बड़े नाम पास से अनबन की भेंट चढ़ गए तो भूपेंद्र सोलंकी, असलम साइकिलवाला, सतीश पटेल और धनसुख राजपूत जैसे लोगों के बीच पहचान वाले नाम नए सीमांकन के फेर में अपनी लुटिया डुबो बैठे।
इस तरह पड़ा असर पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति की नाराजगी का असर वार्ड दो, तीन, चार, पांच, 16 और वार्ड 17 के परिणामों में साफ दिख रहा है। यहां पाटीदार समाज के थोक मत मिलने से आम आदमी पार्टी ने क्लीन स्वीप किया है। उधर, वार्ड 12, 19, 29 समेत कई अन्य वार्ड में दिग्गजों ने नए सीमांकन के कारण अपनी सीटें गंवा दीं।
इस तरह बदला खेल कई वार्ड में शुरु में कांग्रेस के प्रभाव वाले इवीएम खुले तो कांग्रेस ने शुरुआती बढ़त बनानी शुरू की। शुरुआती दौर में वार्ड 14, 19 और कई अन्य वार्ड में कांग्रेस ने बढ़त बनाए रखी। बाद में जैसे ही भाजपा के प्रभाव वाले क्षेत्र के इवीएम खुलने शुरू हुए कांग्रेस लगातार अपनी बढ़त खोने लगी और भाजपा ने इन वार्ड में जीत दर्ज की।