नवसारी के गणदेवी तहसील के धनुरी गाम निवासी तेजल आकाश हलपति (21) को 55 दिन पहले प्रसव पीड़ा होने पर न्यू सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया था। गायनेक विभाग में चिकित्सकों ने तेजल की प्रसूति करवाई, लेकिन नवजात बच्ची जन्म के समय रोई नहीं थी। चिकित्सकों ने बताया कि 28 से 30 सप्ताह में बच्चे का जन्म होने से उसका वजन 2.3 किग्रा था। एचओडी डॉ. संगीता त्रिवेदी और डॉ. पन्ना पटेल की देखरेख नवजात को वेंटिलेटर पर रख इलाज किया गया। डॉ. आदित्य भट्ट ने बताया कि बच्ची के नहीं रोने से उसके शरीर के अंगों को नुकसान होने की आशंका थी। फेफड़े को अच्छे से श्वास लेने लायक बनाने के लिए स्टिरोइड (डीएआरटी), एन्टीबायोटिक दवाई शुरू की गई। वेंटिलेटर के बाद उसे 20 दिन ऑक्सीजन पर रखकर दवाई दी गई। बच्ची को बार-बार मिर्गी आ रही थी।
डॉ. आदित्य ने बताया कि डॉ. सुजीत चौधरी, डॉ. अपूर्व शाह के साथ नर्सिंग स्टाफ टीम ने मिलकर नवजात की देखभाल की जिससे अच्छा परिणाम आया। उन्होंने बताया कि निजी अस्पताल में ऐसे बच्चों के इलाज में 5 से साढ़े 5 लाख का खर्च आता, लेकिन न्यू सिविल अस्पताल में जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत नवजात के लिए जरुरी सभी महंगे टेस्ट, दवाई निशुल्क सरकार की ओर से मिली है। इस योजना में एक दिन से एक वर्ष तक के मां व नवजात के इलाज की व्यवस्था है।
कंगारू थैरेपी से व्यारा की बच्ची को मिली जिंदगी तापी जिले की उच्छल तहसील निवासी भारती पवन काथूड़ (20) व्यारा जनरल अस्पताल में 36 दिन पहले अधूरे माह के जुड़वा लडक़ा-लडक़ी को जन्म दिया था। वजन कम होने के कारण लडक़े की मौत हो गई। इसके बाद चिकित्सकों ने लडक़ी को न्यू सिविल रेफर कर दिया। पिड्याट्रिक विभाग के चिकित्सकों ने बताया कि बच्ची का वजन 1.1 किग्रा ही था। चिकित्सकों ने उसे दो दिन वेंटिलेटर और 12 दिन ऑक्सीजन सपोर्ट पर भर्ती कर विभिन्न दवाई शुरू की। हृदय को सही से धडक़ने के लिए महंगी दवाई दी गई। 21 दिन एन्टीबायोटिक दिया गया। अब बच्ची का वजन 1.4 किग्रा हो गया है। चिकित्सकों ने इसमें दवाओं के साथ-साथ कंगारू थैरेपी से भी इलाज किया। इसमें मां अपने बच्ची को छाती पर सुलाकर रखती है जैसे कंगारू रखता है। इस थैरेपी से नवजात पर अच्छा असर हुआ और मां के दूध पीने से बच्ची का वजन बढऩा शुरू हो गया है। चिकित्सकों के लिए यह केस भी काफी जटिल था।