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सूरत

जिन मशीनों को बड़ी उम्मीद से लगाया, अब उनसे पीछा छुडा रहे वीवर

रोजाना कबाड़ के भाव बिक रही हैं 200 लूम्स मशीनेंकपड़ा उद्योग को अलविदा कह चुके हैं कई उद्यमी, कई कारखाने बंद

सूरतMar 27, 2018 / 09:24 pm

Pradeep Mishra

file photo

सूरत

नोटबंदी और जीएसटी के कारण कपड़ा उद्योग अभी तक मंदी की मार से उभर नहीं पाया है। व्यापार घटने और लाभ कम होने के कारण कई वीवर्स कारखाने किराए पर दे रहे हैं तो कइयों ने मशीनों को स्क्रेप में बेच दिया है।
कपड़ा उद्योग इन दिनों संघर्ष के दौर से गुजर रहा है। नोटबंदी के बाद व्यापार सही तरीके से उभरा नहीं था कि जीएसटी ने दोहरी चोट लगाई। सूरत समेत अन्य राज्यों में भी कपड़े के व्यापार पर असर पड़ा है। कई छोटे और फेरी वाले व्यापारियों ने कपड़े का व्यापार छोड़ दिया है। पहले त्योहार और लग्नसरा के सीजन में साड़ी और ड्रेस मटीरियल्स की अच्छी बिक्री होती थी, लेकिन इस बार दिवाली पर खरीद कम रही। व्यापारियों को लगता था कि लग्नसरा के सीजन में वह दिवाली की कमी पूरी कर लेंगे, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है। व्यापार घटने के कारण कपड़ा उद्यमियों को भी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। सूरत में ज्यादातर सादा लूम्स मशीनें हैं, जिनमें पुराने ढंग से कपड़़ों का उत्पादन होता है। मंदी की मार और बदलते फैशन के कारण कपड़ों की मांग लगातार घट रही है। व्यापारियों का कहना है कि जीएसटी के बाद व्यापार चालीस प्रतिशत घट गया है। एक ओर यार्न की कीमत बढ़ रही है और दूसरी ओर ऑर्डर घट रहे हैं, ऐसे में व्यापार कर पाना मुश्किल हो रहा है। वीवर्स बिना लाभ लिए व्यापार कर रहे हैं। उनके लिए कारखाने का भाड़ा, मशीनों की किस्त, बिजली बिल, श्रमिकों का वेतन निकालना भी मुश्किल हो रहा है। कई उद्यमियों ने कारखाने किराए पर दे दिए हैं और कुछ ने तो कारखाने बंद कर दिए हैं। लूम्स मशीनों के साथ टीएफओ मशीनें भी बिक रही हैं, क्योंकि डाइड यार्न की क्वॉलिटी की मांग होने से टीएफओ मशीन पर काम कम हो गया है। कुछ व्यापारी इस व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। उन्होंने मशीनों को स्क्रेप में बेच दिया। स्क्रेप खरीदने वाले व्यापारियों का कहना है कि प्रतिदिन लगभग 200 लूम्स मशीनें स्क्रेप में बिक रही हैं। इन मशीनों के कल पुर्जे अलग-अलग कर लोहे के भाव बेच दिए जाते हैं। इन्हें राजकोट या अहमदाबाद के व्यापारी खरीद लेते हैं। सादा लूम्स मशीनें 22 हजार, एल घोड़ी 23 हजार, छोटी घोड़ी 24 हजार रुपए में, जबकि टीएफ मशीनें 100 रुपए प्रति किलो के दाम से बिक रही हैं।
मंदी का दौर जारी
सूरत के कपड़ा उद्योग में नोटबंदी के बाद से मंदी का दौर चल रहा है। कपड़ा उत्पादकों को ऑर्डर नहीं मिलने से व्यापार घट गया है। वह व्यापार छोड़ रहे हैं। कइयों ने नए व्यवसाय अपना लिए और कुछ मशीनों को स्क्रेप में बेच रहे हैं। प्रतिदिन सूरत में 200 मशीनें स्क्रेप में बिक रही हैं।
विरल गोदीवाला, मशीन कारोबारी
80 हजार मशीनें बिक गईं
जीएसटी के बाद अब तक लगभग 80 हजार लूम्स मशीनें स्क्रेप में बिक चुकी हैं। व्यापारियों के पास कपड़ों की डिमांड नहीं होने से कपड़ों का उत्पादन घट गया है। इसके कारण वीवर्स को मशीनें बेचनी पड़ रही हैं।
आशीष गुजराती, वीवर्स

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