सेब के अलावा वे अखरोट का कारोबार भी करते हैं। इस बार भारी बर्फवारी के चलते उनके सेब की करीब दस लाख रुपए की फसल खराब हो गई। इसके चलते पांच लाख रुपए का कर्ज हो गया है। फिलहाल बर्फबारी और आतंक के माहौल के चलते वहां कोई काम भी नहीं है। इसलिए वे अपने गांव के करीब १५ परिवारों के साथ सूरत आ गए हैं। अखरोट हमने पहले ही उतार लिए थे। उन्हें घर-घर पर बेचकर आमदनी का जुगाड़ कर रहे हैं। उन्होंने कहा उत्तर कश्मीर में पढ़े लिखे युवा तो बहुत हैं, लेकिन उनके पास काम नहीं हैं।
न सरकारी नौकरियां हैं और न ही निजी क्षेत्र की कंपनियां हैं। सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। गर्मियों में तो खेती बागवानी होती है, लेकिन सर्दियों में कोई काम नहीं रहता है। वहीं, बारामूला जिले के तशीर गांव निवासी ९० वर्षीय मोहम्मद शेख ने बताया कि अधिक बर्फबारी होने पर गांव में रहना मुश्किल हो जाता है। उन्हें परिवार के साथ काम की तलाश में सूरत तक आना पड़ता है। यहां जो काम मिलता है, उसी में गुजर बसर होती है। इस बार तो काम मिलने में भी मुश्किल हो रही है। आंजणा ही नहीं शहर के मुस्लिम बहुल रांदेर, गौराट रोड, लिम्बायत में करीब २०० कश्मीरी परिवारों ने आश्रय लिया हुआ है। इनमें से अधिकतर परिवार खुले मैदानों में छोटे-छोटे टेंटों में रह रहे हंै।
काम नहीं, भीख मांगने को मजबूर
मोहम्मद शेख ने बताया कि उत्तर कश्मीर के कई गांवों से लोग यहां आए हुए हैं। जिन लोगों को जम्मू और दिल्ली में काम नहीं मिलता है, वे यहां तक आते हैं। इस बार यहां भी बहुत अधिक काम नहीं है। इस वजह से गुजर बसर करना मुश्किल हो रहा है। कुछ लोगों को तो गुजारे के लिए भीख तक मांगना पड़ रहा है।
मकान लेने के लिए रुपए नहीं हैं
दिलदार खान ने बताया कि मैं सूरत पहली बार आया हूं। अधिकतर सर्दियों में मुंबई जाता हूं। मुंबई में मकान किराए पर लेकर रहता हूं। मकान किराए पर लेने में कोई खास मुश्किल नहीं है। हम जहां ठहरते हंै वहां के थाने में पहले ही सूचना दे देते हैं। लेकिन अभी लोग ४-५ हजार रुपए किराया मांग रहे हैं। माली हालत ठीक नहीं होने के कारण किराया देने में मुश्किल हो रही है। इसलिए टेंट में रह रहे हैं।
अनुमति ली है
आंजणा क्षेत्र में कश्मीर से करीब ३५ परिवार आए हुए हंै, जो अस्थाई तौर पर रह रहे हैं। उन्होंने इसके लिए पुलिस से अनुमति ले रखी है। वी.एम.मकवाणा, लिम्बायत थाना प्रभारी
दिनेश एम.त्रिवेदी