शहर को कंटेनर फ्री बनाना केंद्र सरकार के स्वच्छता मिशन की पहली शर्त है। शहर में कंटेनरों की वजह से ही सूरत स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछड़ गया था। इसके बाद से ही मनपा प्रशासन ने शहर को कंटेनर फ्री बनाने की मुहिम छेड़ी थी। वर्कप्लान तैयार कर शहर में जगह-जगह लगे कंटेनरों को हटाने का काम शुरू हुआ तो साथ ही उसका विरोध भी शुरू हो गया। मनपा की सलाह भी लोगों को रास नहीं आई और उन्होंने रास्तों पर ही जगह-जगह कचरा फेंकना शुरू कर दिया। शहर को जल्द से जल्द कंटेनर फ्री बनाने की जिद में मनपा प्रशासन भी कंटेनर हटाने से पहले उसके बाद के हालात से निपटने के लिए प्लान वर्कआउट नहीं कर पाया, जिसका नतीजा सामने है।
यह भी सच है कि जनभागीदारी के बगैर सरकारी मशीनरी किसी भी शहर को साफ-सुथरा नहीं रख सकती। लोगों को भी अपनी फितरत बदलनी होगी। शहर को साफ रखने के लिए सूरतीयों को खुद में बदलाव लाना होगा। यदि हम तय कर लें कि रास्तों पर गंदगी नहीं फैलाएंगे तो शहर में बाहर से आने वाले लोगों को भी समझा पाएंगे कि रास्तों को गंदा न करें। यह लोगों को भी सोचना होगा कि सरकारी मशीनरी के भरोसे बैठे रहे तो अपने आसपास से भी कचरा साफ नहीं कर पाएंगे। इन सबके बीच कोई तो कड़ी है जो छूट रही है और सूरत की सूरत कचरे ने बदहाल कर रखी है। जरूरत उस छूटी हुई कड़ी को जोडऩे की है।