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मंदिर

देवी माता का ऐसा मंदिर जहां गुरु द्रोणाचार्य ने की तपस्या

– दूनागिरी माता का भव्य मंदिर

Nov 24, 2022 / 04:13 pm

दीपेश तिवारी

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हिंदू संस्कृति में गुरु का अत्यधिक महत्व है तभी गुरु को माता पिता से भी उपर रखा गया है। यहां तक की भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है।

“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः”

प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार था गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, उनका शिष्यों के प्रति स्नेह भाव, और ज्ञान बांटने का निःस्वार्थ भाव… शिक्षक में होती थी, गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं आज्ञाकारिता- अनुशासन शिष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है।

ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां गुरु द्रोणाचार्य ने तपस्या की थी। दरअसल देवभूमि उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र से 15किमी आगे मां दूनागिरी मंदिर (Dunagiri temple) अपार आस्था का केंद्र है।

देवभूमि के कुमाऊं क्षेत्र के अल्मोड़ा जिले में एक पौराणिक पर्वत शिखर का नाम है, द्रोण, द्रोणगिरी, द्रोण-पर्वत, द्रोणागिरी, द्रोणांचल और द्रोणांचल-पर्वत। वैसे तो मंदिर के बारे मे बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। जिससे यहां मां वैष्णव के विराजमान होने का प्रतीक मिलता है ।

हिंदू संस्कृति में द्रोणागिरी को पौराणिक महत्त्व के सात महत्वपूर्ण पर्वत शिखरों में से एक माना जाता है। दूनागिरी पर्वत पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां उगतीं है। इनमें से कुछ महौषधि रूपी वनस्पतियॉं रात के अधेरे में भी दीपक की भॉंति चमकती है। यहां तक की आज भी पर्वत पर घूमने पर हमें अनेक प्रकार की वनस्पतियां यहां दिखायी देती हैं। जो स्थानीय लोगों की पहचान में भी नहीं आती हैं।

दूनागिरी मंदिर (Dunagiri temple ) द्रोणगिरी पर्वत की चोटी पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। वहीं इस मंदिर में जाने के लिए सडक से लगभग 365 सीढ़ियां चढ़नी पड़तीं हैं।

इन सीढ़ियों की ऊंचाई कम व लम्बाई ज्यादा है। सीढ़ियों को टिन शेड से ढका गया है। ताकि श्रद्धालुओं को आने जाने में धूप और वर्षा से बचाया जा सके। इस पूरे रास्ते में हजारों घंटे लगे हुए हैं, जो लगभग एक जैसे हैं।

दूनागिरी मंदिर रखरखाव का कार्य ‘आदि शाक्ति मां दुनागिरी मंदिर ट्रस्ट’ द्वारा किया जाता है। दुनागिरी मंदिर (Dunagiri temple ) में ट्रस्ट द्वारा हर रोज भण्डारे का प्रबंधन किया जाता है।

दूनागिरी मंदिर से हिमालय पर्वत की पूरी श्रृंखला को देखा जा सकता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में बहुत से पौराणिक और सिद्ध शक्तिपीठ है। उन्हीं शक्तिपीठ में से एक है द्रोणागिरी वैष्णवी शक्तिपीठ। वैष्णो देवी के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं में द्रोणागिरि पर्वत “दूनागिरि” दूसरी वैष्णो शक्तिपीठ मानी जाती है। दूनागिरी मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। यहां प्राकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिण्डियां माता भगवती के रूप में पूजी जाती हैं।

दूनागिरी मंदिर(Dunagiri temple ) में एक अखंड ज्योति का जलना मंदिर भी एक विशेषता है। यहां दूनागिरी माता का वैष्णवी रूप में होने से, इस स्थान में किसी भी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती है। यहां तक की मंदिर में भेट स्वरुप अर्पित किया गया नारियल भी, मंदिर परिसर में नहीं फोड़ा जाता है।

भारतवर्ष के पौराणिक भूगोल व इतिहास के अनुसार, यह 7 महत्वपूर्ण पर्वत शिखरों में से एक माना जाता है। यहां तक की विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, वायु पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्म पुराण, देवीभागवत पुराण आदि पुराणों में सप्तद्वीपीय भूगोल रचना के अन्तर्गत द्रोणगिरी (वर्तमान दूनागिरी) का वर्णन मिलता है। वहीं श्रीमद्भागवतपुराण के अनुसार दूनागिरी की दूसरी विशेषता इसका औषधि-पर्वत होना भी है। विष्णु पुराण में भारत के कुल सात पर्वतों में इसे चौथे पर्वत के रूप में औषधि-पर्वत के नाम से संबोधित किया गया है।

दूनागिरी की पहचान का तीसरा महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि रामायण व रामलीला में लक्ष्मण-शक्ति की कथा पर है। मंदिर निर्माण के बारे में कहा जाता है कि त्रेतायुग में जब लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा शक्ति लगी थी। तब सुशेन वैद्य ने हनुमान जी से द्रोणाचल नाम के पर्वत से संजीवनी बूटी लाने को कहा था। हनुमान जी उस स्थान से पूरा पर्वत उठा रहे थे तो, वहा पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिरा और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरी का मंदिर बन गया।

यह भी माना जाता है कि इसी पर्वत पर गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इसका नाम द्रोणागिरी पड़ा था। गुरु द्रोणाचार्य ने यहां माता पर्वतों की स्तुति की, जिससे यहां उनके द्वारा माता की शक्तिपीठ स्थापना की गयी।

वहीं यहां से लगभग 4-5 किलोमीटर ऊपर घने जंगल की चढ़ाई के बाद पाण्डुखोली पर्वत शिखर है। यहीं पर पांचों पाण्डवों ने द्रौपदी सहित अज्ञातवास व्यतीत किया था। जिनके कुछ अवशेष भी यहां विद्यमान हैं।

वर्तमान में कई वर्षों से यहां पर एक आश्रम भी है जहां समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठानादि होते रहते हैं। इस रहस्यमयी शांत पर्वत शिखर का भ्रमण करने काफी पर्यटक आते रहते हैं। यहां कुछ ऐसे चिह्न भी मिलते हैं जिनसे प्रमाणित होता है कि पांडवों ने इस स्थान पर महादेव शंकर के देवालय की स्थापना की थी, जिसमें भगवन शिव और पांडवों की मूर्तिया मौजूद हैं।

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