धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पर्वतराज हिमालय के घर आदिशक्ति का अवतार हुआ था, जहां इनका नाम पार्वती रखा गया। युवा होने पर पार्वती के मन में भगवान शिव से विवाह की इच्छा हुई। लेकिन ऐसी संभावना न दिखने पर पार्वती ने तपस्या से स्थिति को बदलने का निश्चय किया। लेकिन तपस्या के चरम पर पहुंचने और सफल होने पर भगवान शिव को विवाह के लिए राजी होना पड़ा।
मंदिर के पास ही तीन कुंड हैं पहला ब्रह्मा कुंड, दूसरा विष्णु कुंड और तीसरा रूद्र कुंड। कहा जाता है कि ब्रह्माकुंड में शिव विवाह से पूर्व ब्रह्माजी ने स्नान किया था। वहीं विष्णुकुंड में भगवान विष्णु ने और रूद्रकुंड में सभी देवी देवताओं ने स्नान किया था। इन सभी कुंडों में जल स्रोत सरस्वती कुंड को माना जाता है। मान्यता है कि इसका निर्माण विष्णुजी की नासिका से हुआ है। विवाह के समय भगवान शिव को एक गाय दान दी गई थी, जो मंदिर के एक स्तंभ से बांधी गई थी। मान्यता है कि इन कुंडों में स्नान से संतानहीनता दूर होती है।