कभी ओरछा के जंगलों में भी लोगों को बाघों की दहाड़ सुनाई देती थी। बेतवा और जामनी नदियों के बीच का विशाल वन परिक्षेत्र बाघों के लिए उपयुक्त स्थल बना हुआ था। उस समय यहां पर अक्सर बाघों का मूवमेंट दिखाई देता था। आज भी ओरछा में कई बुजुर्ग ऐसे है, जिन्होंने बाघों का यह मूवमेंट एवं उनकी दहाड़ को ओरछा में सुना है। ओरछा निवासी जगदीश सिंह गौर एवं लक्षमण यादव बताते है कि यहां पर बाघों के आने के कारण कोई अकेला जंगल नही जाता था। लकड़ी बीनने के लिए भी लोग समूह में जाते थे और दिन में ही काम निपटाकर बाहर आ जाते थे।
शिवपुरी से थी मूवमेंट
वहीं वन विभाग के पुराने कर्मचारियों की माने तो यहां पर 1980 तक बाघों के मूवमेंट के प्रमाण है। इसके बाद इनका आना बंद हो गया। यह बाघ शिवपुरी के जंगलों से लगातार यहां आते थे। ओरछा से लगे वन्य ग्राम सिंहपुरा के पास अक्सर इनका आना होता था। बेतवा नदी से लगा यह गांव इनका प्रमुख रहवास सा हो गया था। उस समय शिवपुरी से लेकर ओरछा तक लगातार जंगली क्षेत्र होने से इनकी मूवमेंट होती थी, लेकिन अब बीच-बीच में जंगल पूरी तरह से नष्ट होने के कारण इन्हें पूरा कॉरीडोर नहीं मिल पाता है।
पेंथर देखे गए गए है
इस मामले में डीएफओ एपीएस सेंगर का कहना है कि बाघों को मूवमेंट के लिए लंबा कॉरीडोर चाहिए। जो अब नहीं है। लेकिन जिले में पेंथर का मूवमेंट होने लगा है। पिछले दो सालों में तीन बार यहां पर तेंदुआ देखा गया है। विदित हो कि दो वर्ष पूर्व ग्राम दुर्गापुर में पन्ना के जंगलों से आया एक तेंदुआ किसान के घर में जा घुसा था। उसे किसान ने कमरें में बंद कर दिया था। वन विभाग ने उसे पिंजरें में भी कैद कर लिया था, लेकिन वह भाग निकला था। वहीं हाल ही में बड़ागांव धसान में भी एक किसान के खेत में तेंदुआ पहुंचा था।